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"अटल बिहारी वाजपेयी": अवतरणों में अंतर

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अपने ही मन से कुछ बोलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!


==बाह्य सूत्र==

* [http://www.gyanipandit.com/top-10-quotes-by-atal-bihari-vajpayee-in-hindi/ Atal Bihari Vajpayee Speech Slogan Quotes Sivichar In Hindi]

१३:४८, २९ मार्च २०१५ का अवतरण

कविता - एक बरस बीत गया

झुलासाता जेठ मास

शरद चांदनी उदास

सिसकी भरते सावन का

अंतर्घट रीत गया

एक बरस बीत गया


सीकचों मे सिमटा जग

किंतु विकल प्राण विहग

धरती से अम्बर तक

गूंज मुक्ति गीत गया

एक बरस बीत गया


पथ निहारते नयन

गिनते दिन पल छिन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया



कविता - अपने ही मन से कुछ बोलें

क्या खोया, क्या पाया जग में

मिलते और बिछुड़ते मग में

मुझे किसी से नहीं शिकायत

यद्यपि छला गया पग-पग में

एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!


पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी

जीवन एक अनन्त कहानी

पर तन की अपनी सीमाएँ

यद्यपि सौ शरदों की वाणी

इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!


जन्म-मरण अविरत फेरा

जीवन बंजारों का डेरा

आज यहाँ, कल कहाँ कूच है

कौन जानता किधर सवेरा

अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!

अपने ही मन से कुछ बोलें!


बाह्य सूत्र