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"गोपालदास नीरज": अवतरणों में अंतर

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प्रसिद्ध कवि गोपालदास नीरज की सूक्तियाँ
(कोई अंतर नहीं)

२२:४०, २४ सितम्बर २०१६ का अवतरण

गोपालदास नीरज (04 जनवरी1925) इक्कीसवीं सदी में हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि एवं बॉलीवुड गीतकार हैं।

दोहे

  • कवियों की और चोर की गति है एक समान।दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान।।
  • जिनको जाना था यहां पढ़ने को स्कूल।जूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल।।
  • करें मिलावट फिर न क्यों व्यापारी व्यापार।जब कि मिलावट से बने रोज यहां सरकार।।
  • रुके नहीं कोई यहां नामी हो कि अनाम।कोई जाए सुबह को कोई जाए शाम।।
  • राजनीति शतरंज है, विजय यहां वो पाय।जब राजा फंसता दिखे पैदल दे पिटवाय।।
  • तोड़ो, मसलो या कि तुम उस पर डालो धूल।बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल।।
  • पूजा के सम पूज्य है जो भी हो व्यवसाय।उसमें ऐसे रमो ज्यों जल में दूध समाय।।
  • हम कितना जीवित रहे, इसका नहीं।महत्व हम कैसे जीवित रहे, यही तत्व अमरत्व।।
  • जीने को हमको मिले यद्यपि दिन दो-चार।जिएं मगर हम इस तरह हर दिन बनें हजार।।
  • स्नेह, शान्ति, सुख, सदा ही करते वहां निवास।निष्ठा जिस घर मां बने, पिता बने

विश्वास।।

  • किया जाए नेता यहां, अच्छा वही शुमार।

सच कहकर जो झूठ को देता गले उतार।।

  • कागज की एक नाव पर मैं हूं आज सवार।और इसी से है मुझे करना सागर पार।।
  • कैंची लेकर हाथ में वाणी में विष घोल।पूछ रहे हैं फूल से वो सुगंध का मोल।।
  • इंद्रधनुष के रंग-सा जग का रंग अनूप।बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप।।
  • मौसम कैसा भी रहे कैसी चले बयारबड़ा कठिन है भूलना पहला-पहला प्यार।।

बाहरी सूत्र


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