"कबीर": अवतरणों में अंतर
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*साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।<br /> |
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:आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥ |
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*सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद।<br /> |
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:कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥ |
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*तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय।<br /> |
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:कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥ |
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*बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।<br /> |
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:पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥ |
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==बाह्य सूत्र== |
==बाह्य सूत्र== |
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* '''[http://www.gyanipandit.com/kabir-ke-dohe/ Kabir Ke Dohe]''' |
* '''[http://www.gyanipandit.com/kabir-ke-dohe/ Kabir Ke Dohe]''' |
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* '''[http://www.gyanipandit.com/kabir-das-biography-in-hindi/ संत कबीर दास जीवनी]''' |
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१५:४९, ११ मार्च २०१६ का अवतरण
कबीर (११४०-१५१८) एक भारतीय कवि, रहस्यवादी, और दार्शनिक थे। वे उत्तर भारत के एक सन्त भी थे।
सूक्तियाँ
- चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
- जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
- माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
- एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
- माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
- कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
- तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
- कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
- गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
- बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
- सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
- कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
- साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
- मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
- धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
- माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
- कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
- हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
- माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
- आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
- रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
- हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
- दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
- जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
- सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद ।
- कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
- लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
- पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥
- जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान ।
- मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥
- धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
- माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
- बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
- पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
- पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
- एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥
- कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
- जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥
- जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय ।
- यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय ॥
- जहाँ काम तहाँ नाम नहिं, जहाँ नाम नहिं वहाँ काम ।
- दोनों कबहूँ नहिं मिले, रवि रजनी इक धाम ॥
- कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय ।
- भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय ॥
- साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
- सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
- जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
- तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
- उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
- तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
- सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
- धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
- साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
- आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥
- सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद।
- कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
- तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय।
- कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
- बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
- पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥