"व्यायाम": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) '* श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनां सहिष्णुता । : आरोग्यं चापि परमं व्यायामदुपजायते ॥ :: भावार्थ : श्रम थकावट ग्लानि (दुःख) प्यास शीत (जाड़ा) उष्णता (गर्मी) आदि सहने की शक्ति व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया |
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२२:५८, १७ जनवरी २०२२ का अवतरण
- श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनां सहिष्णुता ।
- आरोग्यं चापि परमं व्यायामदुपजायते ॥
- भावार्थ : श्रम थकावट ग्लानि (दुःख) प्यास शीत (जाड़ा) उष्णता (गर्मी) आदि सहने की शक्ति व्यायाम से ही आती है और परम आरोग्य अर्थात् स्वास्थ्य की प्राप्ति भी व्यायाम से ही होती है ।
- न चास्ति सदृशं तेन किंचित्स्थौल्यापकर्षणम् ।
- न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो भयात् ॥
- भावार्थ : अधिक स्थूलता को दूर करने के लिए व्यायाम से बढ़कर कोई और औषधि नहीं है, व्यायामी मनुष्य से उसके शत्रु सर्वदा डरते हैं और उसे दुःख नहीं देते ।
- व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं।
- आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम् ॥
- भावार्थ - व्यायाम से स्वास्थ्य, लम्बी आयु, बल और सुख की प्राप्ति होती है। निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं ।
- व्यायामं कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम् ।
- विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ॥
- भावार्थ - व्यायाम करने वाला मनुष्य गरिष्ठ, जला हुआ अथवा कच्चा किसी प्रकार का भी खराब भोजन क्यों न हो, चाहे उसकी प्रकृति के भी विरुद्ध हो, भलीभांति पचा जाता है और कुछ भी हानि नहीं पहुंचाता ।
- शरीरोपचयः कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता ।
- दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा ॥
- भावार्थ - व्यायाम से शरीर बढ़ता है । शरीर की कान्ति वा सुन्दरता बढ़ती है । शरीर के सब अंग सुड़ौल होते हैं । पाचनशक्ति बढ़ती है । आलस्य दूर भागता है । शरीर दृढ़ और हल्का होकर स्फूर्ति आती है । तीनों दोषों की (मृजा) शुद्धि होती है।
- न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति ।
- स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥
- भावार्थ - व्यायामी मनुष्य पर बुढ़ापा सहसा आक्रमण नहीं करता, व्यायामी पुरुष का शरीर और हाड़-मांस सब स्थिर होते हैं।