"मित्र": अवतरणों में अंतर

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: अर्थ : जो कोई भी हों , सैकड़ो मित्र बनाने चाहिये । देखो, (जैसे कि) मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे (वैसे ही अधिकाधिक मित्र रहने पर विपत्ति में कोई न कोई मित्र काम आ सकता है)!
: अर्थ : जो कोई भी हों , सैकड़ो मित्र बनाने चाहिये । देखो, (जैसे कि) मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे (वैसे ही अधिकाधिक मित्र रहने पर विपत्ति में कोई न कोई मित्र काम आ सकता है)!


* न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपुः
* न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपुः
: व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा॥ -- (चाणक्य)
: व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिपस्तथा ॥ -- (चाणक्य)
: अर्थ : न कोई किसी का मित्र होता है, न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।
: अर्थ : न कोई किसी का मित्र होता है, न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।


* धीरज धरम मित्र अरु नाऱी, आपद काल परखिये चारी । -- गोस्वामी तुलसीदास
* धीरज धरम मित्र अरु नारी, आपद काल परखिये चारी । -- गोस्वामी तुलसीदास


* शत्रु ऐसे राजा का नाश नहीं कर सकता जिसके पास दोष बताने वाले, असहमति जताने वाले और सुधार करने वाले मित्र हों। -- सन्त तिरुवल्लुवर
* शत्रु ऐसे राजा का नाश नहीं कर सकता जिसके पास दोष बताने वाले, असहमति जताने वाले और सुधार करने वाले मित्र हों। -- सन्त तिरुवल्लुवर

०८:०३, ६ जनवरी २०२२ का अवतरण

  • यानि कानि च मित्राणि कृतानि शतानि च ।
पश्य मूषकमित्रेण कपोताः मुक्तबन्धनाः ॥ -- (पंचतन्त्र)
अर्थ : जो कोई भी हों , सैकड़ो मित्र बनाने चाहिये । देखो, (जैसे कि) मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे (वैसे ही अधिकाधिक मित्र रहने पर विपत्ति में कोई न कोई मित्र काम आ सकता है)!
  • न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपुः ।
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिपस्तथा ॥ -- (चाणक्य)
अर्थ : न कोई किसी का मित्र होता है, न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।
  • धीरज धरम मित्र अरु नारी, आपद काल परखिये चारी । -- गोस्वामी तुलसीदास
  • शत्रु ऐसे राजा का नाश नहीं कर सकता जिसके पास दोष बताने वाले, असहमति जताने वाले और सुधार करने वाले मित्र हों। -- सन्त तिरुवल्लुवर
  • व्यापार पर खड़ी मैत्री, मैत्री पर खड़े व्यापार से श्रेष्ठतर है। -- जॉन डी. रॉकफेलर
  • प्रेम एक फूल है, मैत्री आश्रय देने वाला एक वृक्ष। -- सैमुअल टेलर कोलेरिज
  • यदि आपके पास एक सच्चा मित्र है तो समझिए आपको आपके हिस्से से अधिक मिल गया। -- थॉमस फुलर
  • मित्र पाने का एकमात्र तरीका यह कि आप मित्र बन जाएं। -- राल्फ वाल्डो एमर्सन
  • आपके हृदय में एक चुम्बक होता है जो सच्चे मित्रों को आपकी ओर आकर्षित करता है। वह चुंबक है आपकी निःस्वार्थता और दूसरों के बारे में पहले सोचने का स्वभाव। जब आप दूसरों के लिए जीना सीख लेते हैं, तब दूसरे आपके लिए जीने लगते हैं। -- परमहंस योगानन्द
  • जब आप मित्र बनाएं तो व्यक्तित्व की बजाए चरित्र को महत्व दें। -- सॉमरसेट मॉम
  • यदि आप मित्र बनाने निकलेंगे तो आपको बहुत कम मित्र मिलेंगे। यदि आप मित्र बनने निकलेंगे तो सर्वत्र आपको मित्र मिलेंगे। -- जिग जिगलर
  • ऐसा प्रेम जो दोस्ती की बुनियाद पर नहीं टिका होता, रेत के किले की तरह होता है। -- एला व्हीलर
  • जीवन में केवल तीन सच्चे मित्र होते हैं: वृद्ध पत्नी, पुराना कुत्ता और वर्तमान धन। -- बेंजामिन फ्रैंकलिन
  • जो मित्रता बराबरी की नहीं होती वह हमेशा घृणा पर ही समाप्त होती है। -- गोल्डस्मिथ
  • महान व्यक्तियों की मित्रता नीचों से नहीं होती, हाथी सियारों के मित्र नहीं होते। -- भारवि
  • मित्र बनाना सरल है, मैत्री पालन दुष्कर है, चित्तों की अस्थिरता के कारण अल्प मतभेद होने पर भी मित्रता टूट जाती है। -- वाल्मीकि
  • बुद्धिमान और वफादार मित्र से बढ़कर कोई दूसरा संबंधी नहीं है। -- बेंजामिन फ्रैंकलिन
  • मित्र के तीन लक्षण हैं – अहित से रोकना, हित में लगाना और विपत्ति में साथ नहीं छोड़ना। -- अश्वघोष
  • विद्या, शूरवीरता, दक्षता, बल और धैर्य – ये पांच मनुष्य के स्वाभाविक मित्र बताये गए है। विद्वान पुरुष इन्हीं के द्वारा जगत के कार्य करते हैं। -- वेदव्यास
  • सम्पन्नता तो मित्र बनाती है, किन्तु मित्रों की परख विपदा में ही होती है। -- विलियम शेक्सपीयर
  • मित्रों से जहाँ लेन-देन शुरू हुआ, वहां मन मुटाव होते देर नहीं लगती। -- प्रेमचंद
  • विवाह और मित्रता सामान स्थिति वालों से करनी चाहिए। -- हितोपदेश
  • जो व्यक्ति अकेले में तुम्हारा दोष बताये उसे अपना मित्र समझो। -- थैकर
  • मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा होता है। -- वेदव्यास
  • परदेश में मित्र विद्या होती है और घर में मित्र पत्नी होती है, रोगियों का मित्र दवा और मरने के बाद धर्म ही मित्र होता है। -- चाणक्य
  • सामने मिष्ठान सा मधुर बोलनेवाले और पीठ पीछे विष भरी छुरी मारने वाले मित्र को त्याग देना चाहिए। -- हितोपदेश
  • यदि कोई हमारा सच्चा मित्र न हो तो धरती निर्जन वन के समान प्रतीत होगा। -- बेकन
  • सच्चे दोस्त सामने से छुरा भोंकते हैं। -- ऑस्कर वाइल्ड