"मित्र": अवतरणों में अंतर

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'* यानि कानि च मित्राणि कृतानि शतानि च । : पश्य मूषकमित्रेण कपोताः मुक्तबन्धनाः ॥ -- (पंचतन्त्र) : अर्थ : जो कोई भी हों , सैकड़ो मित्र बनाने चाहिये । देखो, (जैसे कि) मित्र चूहे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
 
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* आवश्यकता पड़ने पर जो मित्रता निभाता है वही सच्चा मित्र है।
* आवश्यकता पड़ने पर जो मित्रता निभाता है वही सच्चा मित्र है।

* न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपुः
: व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा॥ -- (चाणक्य)
: अर्थ : न कोई किसी का मित्र होता है, न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।

* शत्रु ऐसे राजा का नाश नहीं कर सकता जिसके पास दोष बताने वाले, असहमति जताने वाले और सुधार करने वाले मित्र हों। -- सन्त तिरुवल्लुवर

* व्यापार पर खड़ी मैत्री, मैत्री पर खड़े व्यापार से श्रेष्ठतर है। -- जॉन डी. रॉकफेलर

* प्रेम एक फूल है, मैत्री आश्रय देने वाला एक वृक्ष। -- सैमुअल टेलर कोलेरिज

* यदि आपके पास एक सच्चा मित्र है तो समझिए आपको आपके हिस्से से अधिक मिल गया। -- थॉमस फुलर

* मित्र पाने का एकमात्र तरीका यह कि आप मित्र बन जाएं। -- राल्फ वाल्डो एमर्सन

* आपके हृदय में एक चुम्बक होता है जो सच्चे मित्रों को आपकी ओर आकर्षित करता है। वह चुंबक है आपकी निःस्वार्थता और दूसरों के बारे में पहले सोचने का स्वभाव। जब आप दूसरों के लिए जीना सीख लेते हैं, तब दूसरे आपके लिए जीने लगते हैं। -- परमहंस योगानन्द

* जब आप मित्र बनाएं तो व्यक्तित्व की बजाए चरित्र को महत्व दें। -- सॉमरसेट मॉम

* यदि आप मित्र बनाने निकलेंगे तो आपको बहुत कम मित्र मिलेंगे। यदि आप मित्र बनने निकलेंगे तो सर्वत्र आपको मित्र मिलेंगे। -- जिग जिगलर

* ऐसा प्रेम जो दोस्ती की बुनियाद पर नहीं टिका होता, रेत के किले की तरह होता है। -- एला व्हीलर

०७:३८, ६ जनवरी २०२२ का अवतरण

  • यानि कानि च मित्राणि कृतानि शतानि च ।
पश्य मूषकमित्रेण कपोताः मुक्तबन्धनाः ॥ -- (पंचतन्त्र)
अर्थ : जो कोई भी हों , सैकड़ो मित्र बनाने चाहिये । देखो, (जैसे कि) मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे (वैसे ही अधिकाधिक मित्र रहने पर मुसीबत में कोई न कोई मित्र काम आ सकता है !
  • आवश्यकता पड़ने पर जो मित्रता निभाता है वही सच्चा मित्र है।
  • न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपुः
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा॥ -- (चाणक्य)
अर्थ : न कोई किसी का मित्र होता है, न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।
  • शत्रु ऐसे राजा का नाश नहीं कर सकता जिसके पास दोष बताने वाले, असहमति जताने वाले और सुधार करने वाले मित्र हों। -- सन्त तिरुवल्लुवर
  • व्यापार पर खड़ी मैत्री, मैत्री पर खड़े व्यापार से श्रेष्ठतर है। -- जॉन डी. रॉकफेलर
  • प्रेम एक फूल है, मैत्री आश्रय देने वाला एक वृक्ष। -- सैमुअल टेलर कोलेरिज
  • यदि आपके पास एक सच्चा मित्र है तो समझिए आपको आपके हिस्से से अधिक मिल गया। -- थॉमस फुलर
  • मित्र पाने का एकमात्र तरीका यह कि आप मित्र बन जाएं। -- राल्फ वाल्डो एमर्सन
  • आपके हृदय में एक चुम्बक होता है जो सच्चे मित्रों को आपकी ओर आकर्षित करता है। वह चुंबक है आपकी निःस्वार्थता और दूसरों के बारे में पहले सोचने का स्वभाव। जब आप दूसरों के लिए जीना सीख लेते हैं, तब दूसरे आपके लिए जीने लगते हैं। -- परमहंस योगानन्द
  • जब आप मित्र बनाएं तो व्यक्तित्व की बजाए चरित्र को महत्व दें। -- सॉमरसेट मॉम
  • यदि आप मित्र बनाने निकलेंगे तो आपको बहुत कम मित्र मिलेंगे। यदि आप मित्र बनने निकलेंगे तो सर्वत्र आपको मित्र मिलेंगे। -- जिग जिगलर
  • ऐसा प्रेम जो दोस्ती की बुनियाद पर नहीं टिका होता, रेत के किले की तरह होता है। -- एला व्हीलर