"मोहनदास करमचंद गांधी": अवतरणों में अंतर

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मोहनदास करमचन्द गांधी (2 अक्टूबर 1869 - 30 जनवरी 1948) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया।
मोहनदास करमचन्द गांधी (2 अक्टूबर 1869 - 30 जनवरी 1948) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया।



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==सूक्ति==
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वे ईसाई हैं, इससे क्या हिन्दुस्तानी नहीं रहे ? और परदेशी बन गये ?
वे ईसाई हैं, इससे क्या हिन्दुस्तानी नहीं रहे ? और परदेशी बन गये ?

१०:२९, २ दिसम्बर २०१७ का अवतरण

मोहनदास करमचन्द गांधी (2 अक्टूबर 1869 - 30 जनवरी 1948) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया।


सूक्ति

वे ईसाई हैं, इससे क्या हिन्दुस्तानी नहीं रहे ? और परदेशी बन गये ?

कितने ही नवयुवक शुरु में निर्दोष होते हुए भी झूठी शरम के कारण बुराई में फँस जाते होगे ।

उस आस्था का कोई मूल्य नहीं जिसे आचरण में न लाया जा सके।
(महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १८०)

अहिंसा एक विज्ञान है। विज्ञान के शब्दकोश में 'असफलता' का कोई स्थान नहीं।
(महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ ८१)

सार्थक कला रचनाकार की प्रसन्नता, समाधान और पवित्रता की गवाह होती है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५६)

एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १५९)

मनुष्य अक्सर सत्य का सौंदर्य देखने में असफल रहता है, सामान्य व्यक्ति इससे दूर भागता है और इसमें निहित सौंदर्य के प्रति अंधा बना रहता है।
(महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १८०)

चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो मातापिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७)

विश्व के सारे महान धर्म मानवजाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं।
(महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २५७)

अधिकारों की प्राप्ति का मूल स्रोत कर्तव्य है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७)

सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। 'अहिंसा' ही वह एकमात्र शक्ति है जिससे हम शत्रु को अपना मित्र बना सकते हैं और उसके प्रेमपात्र बन सकते हैं-
(महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २४३)

अधभूखे राष्ट्र के पास न कोई धर्म, न कोई कला और न ही कोई संगठन हो सकता है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २५१)

नि:शस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी।
(महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ २५२)

आत्मरक्षा हेतु मारने की शक्ति से बढ़कर मरने की हिम्मत होनी चाहिए।
(महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३)

जब भी मैं सूर्यास्त की अद्भुत लालिमा और चंद्रमा के सौंदर्य को निहारता हूँ तो मेरा हृदय सृजनकर्ता के प्रति श्रद्धा से भर उठता है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३०२)

वीरतापूर्वक सम्मान के साथ मरने की कला के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए परमात्मा में जीवंत श्रद्धा काफी है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३०२)

क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है।
(महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३९९)

एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और गलत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है।
(महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ १५८)

आपकी समस्त विद्वत्ता, आपका शेक्सपियर और वडर््सवर्थ का संपूर्ण अध्ययन निरर्थक है यदि आप अपने चरित्र का निर्माण व विचारों क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७६)

वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब 'भाषा' है।
(एविल रोट बाइ द इंग्लिश मिडीयम, १९५८ पृष्ठ १८)

स्वच्छता, पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३५६)

निर्मल चरित्र एवं आत्मिक पवित्रता वाला व्यक्तित्व सहजता से लोगों का विश्वास अर्जित करता है और स्वत : अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर देता है।
(ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ५७)

जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन भक्ति है।
(ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ४३)

सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १९२)

अधिकार-प्राप्ति का उचित माध्यम कर्तव्यों का निर्वाह है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १७९)

उफनते तूफान को मात देना है तो अधिक जोखिम उठाते हुए हमें पूरी शक्ति के साथ आगे बढना होगा।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २८६)

रोम का पतन उसका विनाश होने से बहुत पहले ही हो चुका था।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३४९)

गुलाब को उपदेश देने की आवश्यकता नहीं होती। वह तो केवल अपनी खुशबू बिखेरता है। उसकी खुशबू ही उसका संदेश है।
(ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ७२)

जहां तक मेरी दृष्टि जाती है मैं देखता हूं कि परमाणु शक्ति ने सदियों से मानवता को संजोये रखने वाली कोमल भावना को नष्ट कर दिया है।
(ट्रुथ इज गॉड, १९५५ , पृष्ठ १)

मेरे विचारानुसार गीता का उद्देश्य आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग बताना है।

(द मैसेज ऑफ द गीता, १९५९, पृष्ठ ४)

गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २७८)

मैं यह अनुभव करता हूं कि गीता हमें यह सिखाती है कि हम जिसका पालन अपने दैनिक जीवन में नहीं करते हैं, उसे धर्म नहीं कहा जा सकता है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३११)

हजारों लोगों द्वारा कुछ सैकडों की हत्या करना बहादुरी नहीं है। यह कायरता से भी बदतर है। यह किसी भी राष्ट्रवाद और धर्म के विरुद्ध है।
(महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २५२)

साहस कोई शारीरिक विशेषता न होकर आत्मिक विशेषता है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ६१)

संपूर्ण विश्व का इतिहास उन व्यक्तियों के उदाहरणों से भरा पडा है जो अपने आत्म-विश्वास, साहस तथा दृढता की शक्ति से नेतृत्व के शिखर पर पहुंचे हैं।
(महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३)

हृदय में क्रोध, लालसा व इसी तरह की -----भावनाओं को रखना, सच्ची अस्पृश्यता है।
(महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३०)

मेरी अस्पृश्यता के विरोध की लडाई, मानवता में छिपी अशुद्धता से लडाई है।
(महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ १६८)

सच्चा व्यक्तित्व अकेले ही सत्य तक पहुंच सकता है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २४८)

शांति का मार्ग ही सत्य का मार्ग है। शांति की अपेक्षा सत्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १५३)

हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है।
(ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६१)

यदि समाजवाद का अर्थ शत्रु के प्रति मित्रता का भाव रखना है तो मुझे एक सच्चा समाजवादी समझा जाना चाहिए।
(महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ ३७)

आत्मा की शक्ति संपूर्ण विश्व के हथियारों को परास्त करने की क्षमता रखती है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १२१)

किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन् बेडियों में होती है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३१३)

ईश्वर इतना निर्दयी व क्रूर नहीं है जो पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के मध्य ऊंच-नीच का भेद करे।
(महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३४)

नारी को अबला कहना अपमानजनक है। यह पुरुषों का नारी के प्रति अन्याय है।
(महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३३)

गति जीवन का अंत नहीं हैं। सही अथो± में मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवित रहता है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७)

जहां प्रेम है, वही जीवन है। ईष्र्या-द्वेष विनाश की ओर ले जाते हैं।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, ए तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७)

यदि अंधकार से प्रकाश उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७)

प्रेम और एकाधिकार एक साथ नहीं हो सकता है।
(महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ११)

प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २६४)

यदि आप न्याय के लिए लड रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २०६)

मनुष्य अपनी तुच्छ वाणी से केवल ईश्वर का वर्णन कर सकता है।
(ट्रुथ इज गॉड, १९९९ पृष्ठ ४५)

यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी ‘ाीतलता प्रदान करेगी।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२)

युद्धबंदी के लिए प्रयत्नरत् इस विश्व में उन राष्ट्रों के लिए कोई स्थान नहीं है जो दूसरे राष्ट्रों का शोषण कर उन पर वर्चस्व स्थापित करने में लगे हैं।
(महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २)

जिम्मेदारी युवाओं को मृदु व संयमी बनाती है ताकि वे अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने के लिए तैयार हो सकें।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७१)

विश्व को सदैव मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३३)

बुद्ध ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २९५)

हम धर्म के नाम पर गौ-रक्षा की दुहाई देते हैं किन्तु बाल-विधवा के रूप में मौजूद उस मानवीय गाय की सुरक्षा से इंकार कर देते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७)

अपने कर्तव्यों को जानने व उनका निर्वाह करने वाली स्त्री ही अपनी गौरवपूर्ण मर्यादा को पहचान सकती है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९४)

स्त्री का अंतज्र्ञान पुरुष के श्रेष्ठ ज्ञानी होने की घमंडपूर्ण धारणा से अधिक यथार्थ है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५१)

जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है और ईश्वर की सत्ता में आस्था रखता है वह कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता।
(महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १६)

समुद्र जलराशियों का समूह है। प्रत्येक बूंद का अपना अस्तित्व है तथापि वे अनेकता में एकता के द्योतक हैं। ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ १४७)

पीडा द्वारा तर्क मजबूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंतर्दृष्टि खोल देती है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२)

किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के खजाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है।
(महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ १६५)

विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नींव ठोस हो।
(एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ पृष्ठ २७)

मेरे विचारानुसार मैं निरंतर विकास कर रहा हूं। मुझे बदलती परिस्थितियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना आ गया है तथापि मैं भीतर से अपरिवर्तित ही हूं।
(ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४)

ब्रह्मचर्य क्या है ? यह जीवन का एक ऐसा मार्ग है जो हमें परमेश्वर की ओर अग्रसर करता है।
(ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४)

प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है।
(ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४)

सत्याग्रह और चरखे का घनिष्ठ संबंध है तथा इस अवधारणा को जितनी अधिक चुनौतियां दी जा रही हैं इससे मेरा विश्वास और अधिक दृढ होता जा रहा है।
(महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २६४)

हमें बच्चों को ऐसी शिक्षा नहीं देनी चाहिए जिससे वे श्रम का तिरस्कार करें।
(एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ २०)

सभ्यता का सच्चा अर्थ अपनी इच्छाओं की अभिवृद्धि न कर उनका स्वेच्छा से परित्याग करना है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १८९)

अंतत : अत्याचार का परिणाम और कुछ नहीं केवल अव्यवस्था ही होती है।
(महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ १०२)

हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जिसमें मालिक मजदूर एवं जमींदार किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २५५)

किसी भी समझौते की अनिवार्य शर्त यही है कि वह अपमानजनक तथा कष्टप्रद न हो।
(महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ६७)

यदि शक्ति का तात्पर्य नैतिक दृढता से है तो स्त्री पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ है।
(महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३)

स्त्री पुरुष की सहचारिणी है जिसे समान मानसिक सामथ्र्य प्राप्त है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२)

जब कोई युवक विवाह के लिए दहेज की शर्त रखता है तब वह न केवल अपनी शिक्षा और अपने देश को बदनाम करता है बल्कि स्त्री जाति का भी अपमान करता है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९८)

धर्म के नाम पर हम उन तीन लाख बाल-विधवाओं पर वैधव्य थोप रहे हैं जिन्हें विवाह का अर्थ भी ज्ञात नहीं है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७)

स्त्री जीवन के समस्त पवित्र एवं धार्मिक धरोहर की मुख्य संरक्षिका है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९३)

महाभारत के रचयिता ने भौतिक युद्ध की अनिवार्यता का नहीं वरन् उसकी निरर्थकता का प्रतिपादन किया है।
(ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ९७)

स्वामी की आज्ञा का अनिवार्य रूप से पालन करना परतंत्रता है परंतु पिता की आज्ञा का स्वेच्छा से पालन करना पुत्रत्व का गौरव प्रदान करती है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७)

भारतीयों के एक वर्ग को दूसरेे के प्रति शत्रुता की भावना से देखने के लिए प्रेरित करने वाली मनोवृत्ति आत्मघाती है। यह मनोवृत्ति परतंत्रता को चिरस्थायी बनानेे में ही उपयुक्त होगी।
(महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३५२)

स्वतंत्रता एक जन्म की भांति है। जब तक हम पूर्णत : स्वतंत्र नहीं हो जाते तब तक हम परतंत्र ही रहेंगे।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३११)

आधुनिक सभ्यता ने हमें रात को दिन में और सुनहरी खामोशी को पीतल के कोलाहल और शोरगुल में परिवर्तित करना सिखाया है।
(ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६०)

मनुष्य तभी विजयी होगा जब वह जीवन-संघर्ष के बजाय परस्पर-सेवा हेतु संघर्ष करेगा।
(महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ३६)

अयोग्य व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी दूसरे अयोग्य व्यक्ति के विषय में निर्णय दे।
(महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३)

धर्म के बिना व्यक्ति पतवार बिना नाव के समान है।
(महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३)

सादगी ही सार्वभौमिकता का सार है।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ८२)

अहिंसा पर आधारित स्वराज्य में, व्यक्ति को अपने अधिकारों को जानना उतना आवश्यक नहीं है जितना कि अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना।
(माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२)

मजदूर के दो हाथ जो अर्जित कर सकते हैं वह मालिक अपनी पूरी संपत्ति द्वारा भी प्राप्त नहीं कर सकता।
(महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३३)

अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४)

पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंत : सफलता का सही अर्थ महान असफलताओं की श्रृंखला है।
(महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४)

थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है।

पूर्ण धारणा के साथ बोला गया "नहीं" सिर्फ दूसरों को खुश करने या समस्या से छुटकारा पाने के लिए बोले गए “हाँ” से बेहतर है।

पूंजी अपने-आप में बुरी नहीं है, उसके गलत उपयोग में ही बुराई है। किसी ना किसी रूप में पूंजी की आवश्यकता हमेशा रहेगी.

मैं मरने के लिए तैयार हूँ, पर ऐसी कोई वज़ह नहीं है जिसके लिए मैं मारने को तैयार हूँ.

जब मैं निराश होता हूँ, मैं याद कर लेता हूँ कि समस्त इतिहास के दौरान सत्य और प्रेम के मार्ग की ही हमेशा विजय होती है। कितने ही तानाशाह और हत्यारे हुए हैं, और कुछ समय के लिए वो अजेय लग सकते हैं, लेकिन अंत में उनका पतन होता है। इसके बारे में सोचो- हमेशा.

उपदेश करने से पहले खुद के गुण देखने चाहिए.

सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है।

जब तक गलती करने की स्वतंत्रता ना हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है।

बाह्य सूत्र