"कृष्ण": अवतरणों में अंतर

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==उक्तियाँ==
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[[File:Krishna and Arjun on the chariot, Mahabharata, 18th-19th century, India.jpg|right|thumb|जब जब धर्म का लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए अवतार लेता हूँ।]]
* जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है।
* जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है।
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* अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।
* अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।
** ''[[w:श्रीमद्भगवद्गीता|श्रीमद्भगवद्गीता]]'' (३.०८)
** '''[[w:श्रीमद्भगवद्गीता|श्रीमद्भगवद्गीता]]''' (३.०८)


*'''''यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारते।<br>अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥<br>परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।<br>धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥'''''
* '''''श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छृद्धः स एव सः।'''''
**हे [[:w:अर्जुन|अर्जुन!]] जब-जब धर्म का लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूँ अर्थात् अवतार लेता हूँ। सज्जनों के कल्याण, दुष्टों के विनाश एवं धर्म की पुनर्स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में जन्म लेता हूँ।
**'''श्रीमद्भगवद्गीता''' (४.०७, ४.०८)

* ''श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छृद्धः स एव सः।''
**मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है.जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है।
**मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है.जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है।
**''श्रीमद्भगवद्गीता'' (१७.०३)
**'''श्रीमद्भगवद्गीता''' (१७.०३)


* प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर, और सोना सभी समान हैं।
* प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर, और सोना सभी समान हैं।

१४:०२, ३ मई २०१६ का अवतरण

कृष्ण - एक हिन्दू देव

कृष्ण हिन्दू धर्म की अनेक परंपराओं में पूजे जाने वाले एक देवता है। कई वैष्णव समूह उन्हें भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जानते हैं जबकि वैष्णव सम्प्रदाय की कुछ दूसरी परंपराओं में उन्हें स्वयं भगवान अथवा परमात्मा माना गया है। कृष्ण का अवसान द्वापर युग का अंत और कलियुग (वर्तमान) कि शुरुआत निर्देशित करता है, जो फरवरी १७/१८, ३१०२ ईसा पूर्व को दिनांकित है। कृष्ण की आराधना का चलन, भगवान कृष्ण के रूप में या वसुदेव, बालकृष्ण अथवा गोपाल के रूप में, कम से कम चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से पाया जाता है।

उक्तियाँ

जब जब धर्म का लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए अवतार लेता हूँ।
  • जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है।
  • अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।
  • यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारते।
    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
    परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
    धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
    • हे अर्जुन! जब-जब धर्म का लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूँ अर्थात् अवतार लेता हूँ। सज्जनों के कल्याण, दुष्टों के विनाश एवं धर्म की पुनर्स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में जन्म लेता हूँ।
    • श्रीमद्भगवद्गीता (४.०७, ४.०८)
  • श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छृद्धः स एव सः।
    • मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है.जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है।
    • श्रीमद्भगवद्गीता (१७.०३)
  • प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर, और सोना सभी समान हैं।
  • व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदी वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे।
  • हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है।

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