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हित

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हित अर्थात कल्याण।

सूक्तियाँ =

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  • मुनिगन निकट बिहग मृग जाहीं।
बाधक बधिक बिलोकि पराहीं॥
हित अनहित पसु पच्छिउ जाना।
मानुष तनु गुन ग्यान निधाना॥2॥ -- रामचरितमानस, अयोध्या काण्ड. श्री राम-भरतादि का संवाद

भावार्थ:-पक्षी और पशु मुनियों के पास चले जाते हैं और शिकारी को देखकर भाग जाते हैं। हित और अनहित पशु पक्षी भी समझते हैं। मनुष्य का शरीर तो गुण और ज्ञान का घर है।