"गुण": अवतरणों में अंतर

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'* सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ते (सभी गुण स्वर्ण पर ही आश्रय पाते हैं।) -- भर्तृहरि * वरमेको गुणी पुत्रो न च मूर्खाः शतान्यपि (एक ही गुणी पुत्र श्रेष्ठ है, सैकड़ों मूर्ख न...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
 
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* सज्जनों के मन घोड़े से गुणों के कारण फूलों की भांति ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं। -- बाणभट्ट
* सज्जनों के मन घोड़े से गुणों के कारण फूलों की भांति ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं। -- बाणभट्ट


* सद्गुण का पुरूस्कार सम्मान है। -- सिसरो
* सद्गुण, अपना ही पुरस्कार है। (Virtue is its own reward.) -- सिसरो


* सद्गुण ही ज्ञान हैं। -- सुकरात
* सद्गुण ही ज्ञान हैं। -- सुकरात

* सद्गुण, अपना ही पुरस्कार है। (Virtue is its own reward.)- शेक्सपीयर


* सभी लोगों के स्वभाव की ही परीक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरि है)। -- हितोपदेश
* सभी लोगों के स्वभाव की ही परीक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरि है)। -- हितोपदेश

०७:३९, १५ जुलाई २०२१ का अवतरण

  • सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ते (सभी गुण स्वर्ण पर ही आश्रय पाते हैं।) -- भर्तृहरि
  • वरमेको गुणी पुत्रो न च मूर्खाः शतान्यपि (एक ही गुणी पुत्र श्रेष्ठ है, सैकड़ों मूर्ख नहीं) ।
  • अपने अनुभवों से बड़ा गुण कोई नहीं। -- अज्ञात
  • अभिप्राय में उदारता, कार्य सम्पादन में मानवता, सफलता में संयम, इन्हीं तीन गुणों से मानव महान बन जाता हैं। -- बिस्मार्क
  • आकाश-मंडल में दिवाकर के उदित होने पर सारे फूल खिल जाते हैं, इस में आश्चर्य ही क्या? प्रशंसनीय है तो वह हारसिंगार फूल (शेफाली) जो घनी आधी रात में भी फूलता है। -- आर्यान्योक्तिशतक
  • आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, ममत्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता। -- भगवान महावीर
  • कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे। -- पंडितराज जगन्नाथ
  • किसी के गुणों को गाने में अपना समय नष्ट करने के बजाय उसे अपनाने में लगाओ। -- कार्ल मार्क्स
  • कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं। -- मृच्छकटिक
  • कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए। -- दर्पदलनम् १.२९
  • गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है । -- शेक्सपीयर
  • गुण और ज्ञान पाने के पश्चात इस जगत में कोई भी झंझट शेष नहीं रह जाता। -- ओशो
  • गुण और ज्ञान वही सिद्ध हैं, जिससे मनुष्यता का भला होता हैं। -- महात्मा गांधी
  • गुण तो आदमी उसमें देखता हैं, जिसके साथ जन्म भर निर्वाह करना हो। -- प्रेमचंद
  • गुण सब स्थानों पर अपना आदर करा लेता हैं। -- कालिदास
  • गुणवान के गुण के अलावा कुछ नहीं देखा जाता। -- प्रेमचंद
  • गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है। -- वासवदत्ता
  • गुणवान व्यक्ति की परीक्षा धन से नहीं सद्गुण और शीलता से होती हैं, जिस प्रकार घोड़ा अपनी साज-सज्जा से नहीं बल्कि ताकत और दौड़ने के गुण से जाना जाता हैं। -- सुकरात
  • गुणवान व्यक्ति दूसरे की गलतियों से अपनी गलती सुधारते हैं। -- साइरस
  • गुणवान से उसकी जाति नहीं पूछी जाती। -- प्रेमचंद
  • गुणवान होने के लिए विनम्रता, जिज्ञासा और सेवा को अपने व्यवहार में सम्मिलित करना चाहिए। तब हमें अमिट ज्ञान की प्राप्ति होगी। -- श्रीमदभगवद्गीता
  • गुरु के दुर्गुण त्यागो, शत्रु के गुण ग्रहण करो। -- अज्ञात
  • घमंड करना जाहिलों का काम है। -- शेख सादी
  • जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है । -- कबीर
  • जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है। -- दीनानाथ दिनेश
  • जो मनुष्य अपनी उन्नति चाहता है, उसे चाहिए कि वह दूसरों के गुण देखने की आदत डालें और स्वयं पर लागू करे। -- अज्ञात
  • जो वीरता से भरा हुआ है, जिसका नाम लोग बड़े गौरव से लेते हैं, शत्रु भी जिसके गुणों की प्रशंसा करते हैं, वही पुरूष वास्तव में पुरूष है। -- गणेश शंकर विद्यार्थी
  • तुम प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हो, तुम सुन्दर चेहरा बनवा सकते हो, सुंदर आंखें सुंदर नाक, तुम अपनी चमड़ी बदलवा सकते हो, तुम अपना आकार बदलवा सकते हो। इससे तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक सर्जन कुछ कर नहीं सकता। -- ओशो
  • दान करके गुप्त रखना चाहिए, घर आये शत्रु का सत्कार करना चाहिए, परोपकार करके मौन रहना चाहिए, और दूसरों के उपकार को प्रकट करते रहना चाहिए। धन वैभव होने पर अभिमान नहीं करना चाहिए, पीठ पीछे निंदा नहीं करना चाहिए, अपना दोष बताये जाने पर क्रोधित नहीं होना चाहिए और उपकार करने वाले प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए ये ऐसे सद्गुण है, जो साधारण पुरूष को महापुरूष बना देते हैं। -- अज्ञात
  • दूसरों का जो आचरण तुम्हें पसंद नहीं , वैसा आचरण दूसरों के प्रति न करो।
  • धन से सद्गुण नहीं उत्पन्न होते, लेकिन सद्गुणों से धन एवं दूसरी वस्तुएं प्राप्त होती हैं। -- कन्फ्यूशियस
  • नम्रता सारे गुणों का दृढ़ स्तम्भ है।
  • पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है । -- गौतम बुद्ध
  • बुद्धिमान किसी का उपहास नहीं करते हैं।
  • मनुष्य गुणों से श्रेष्ठ बनता हैं, आसन पर बैठने से नहीं। महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं बन जाता। -- चाणक्य नीति
  • मनुष्य सुसंगति में रहकर गुण पाता है तो अपने एक अवगुण से भी मुक्त हो जाता हैं। -- एकनाथ
  • मानव जब तक तृष्णा से दूर हैं, गुणवान बना रहता हैं। -- अज्ञात
  • मैं कोयल हूँ और आप कौआ हैं-हम दोनों में कालापन तो समान ही है किंतु हम दोनों में जो भेद है, उसे वे ही जानते हैं जो कि ‘काकली’ (स्वर-माधुरी) की पहचान रखते हैं। -- साहित्यदर्पण
  • यदि राजा किसी अवगुण को पसंद करने लगे तो वह गुण हो जाता है -- शेख़ सादी
  • यदि हम सद्गुण के उपदेशों को आचरण में लायें तो हमारे अंतर में छिपी अपार अध्यात्मिक शक्ति हमें प्राप्त हो जाएगी। -- गुरूनानक
  • शिष्टाचार शारीरिक सुन्दरता के अभाव को पूर्ण कर देता हैं। शिष्टाचार के अभाव में सौन्दर्य का कोई मूल्य नहीं रहता। -- स्वेट मार्टन
  • सज्जनों का स्वभाव गुणों को पास रखना हैं और दुर्जनों का स्वभाव अवगुणों को अपने पास रखना हैं। -- भर्तृहरि
  • सज्जनों के मन घोड़े से गुणों के कारण फूलों की भांति ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं। -- बाणभट्ट
  • सद्गुण, अपना ही पुरस्कार है। (Virtue is its own reward.) -- सिसरो
  • सद्गुण ही ज्ञान हैं। -- सुकरात
  • सभी लोगों के स्वभाव की ही परीक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरि है)। -- हितोपदेश
  • समस्त गुण विनय की दास्तान कहते हैं। विनम्रता का जन्म नम्रता की कोख से होता हैं, अतः जो नम्र है, वही सद्गुण सम्पन्न है। -- अज्ञात
  • संसार में अपने गुणों को, अपने पंखों को फ़ैलाना सीखो, क्योंकि दूसरों के गुणों से और पंखों से न विद्वता संभव है न उड़ान। -- इकबाल
  • संसार में आदरपूर्वक जीने का सरल और शर्तिया उपाय यह है कि हिम जो कुछ बाहर दिखना चाहते हैं, वैसे ही वास्तव में हों भी। -- सुकरात
  • सुन्दरता बढ़ जाती है यदि आपमें गुण भी हों। -- चाणक्य