"कृष्ण": अवतरणों में अंतर

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'''[[:w:कृष्ण|कृष्ण]]''' हिन्दू धर्म की अनेक परंपराओं में पूजे जाने वाले एक देवता है। कई वैष्णव समूह उन्हें भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जानते हैं जबकि [[:w:वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव सम्प्रदाय]] की कुछ दूसरी परंपराओं में उन्हें स्वयं भगवान अथवा परमात्मा माना गया है। कृष्ण का अवसान [[:w:द्वापर युग|द्वापर युग]] का अंत और [[:w:कलियुग|कलियुग]] (वर्तमान) कि शुरुआत निर्देशित करता है, जो फरवरी १७/१८, ३१०२ ईसा पूर्व को दिनांकित है । कृष्ण की आराधना का चलन, भगवान कृष्ण के रूप में या [[:w:वसुदेव|वसुदेव]], बालकृष्ण अथवा गोपाल के रूप में, चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से पाया जाता है।
'''[[:w:कृष्ण|कृष्ण]]''' हिन्दू धर्म की अनेक परंपराओं में पूजे जाने वाले एक देवता है। कई वैष्णव समूह उन्हें भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जानते हैं जबकि [[:w:वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव सम्प्रदाय]] की कुछ दूसरी परंपराओं में उन्हें स्वयं भगवान अथवा परमात्मा माना गया है। कृष्ण का अवसान [[:w:द्वापर युग|द्वापर युग]] का अंत और [[:w:कलियुग|कलियुग]] (वर्तमान) कि शुरुआत निर्देशित करता है, जो फरवरी १७/१८, ३१०२ ईसा पूर्व को दिनांकित है। कृष्ण की आराधना का चलन, भगवान कृष्ण के रूप में या [[:w:वसुदेव|वसुदेव]], बालकृष्ण अथवा गोपाल के रूप में, चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से पाया जाता है।


==उक्तियाँ==
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१०:५२, ३ मई २०१६ का अवतरण

कृष्ण - एक हिन्दू देव

कृष्ण हिन्दू धर्म की अनेक परंपराओं में पूजे जाने वाले एक देवता है। कई वैष्णव समूह उन्हें भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जानते हैं जबकि वैष्णव सम्प्रदाय की कुछ दूसरी परंपराओं में उन्हें स्वयं भगवान अथवा परमात्मा माना गया है। कृष्ण का अवसान द्वापर युग का अंत और कलियुग (वर्तमान) कि शुरुआत निर्देशित करता है, जो फरवरी १७/१८, ३१०२ ईसा पूर्व को दिनांकित है। कृष्ण की आराधना का चलन, भगवान कृष्ण के रूप में या वसुदेव, बालकृष्ण अथवा गोपाल के रूप में, चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से पाया जाता है।

उक्तियाँ

  • ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है|
  • अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है|
  • मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है.जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है|
  • प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर, और सोना सभी समान हैं|
  • व्यक्ति जो चाहे बन सकता है यदी वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे|
  • हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है|

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