मनुष्य

विकिसूक्ति से
  • येषां न विद्या न तपो न दानं,
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ -- चाणक्य ?
जिन लोगों के पास न तो विद्या, न तप, न तप, न ज्ञान, न शील, न गुण और न धर्म है, वे लोग इस पृथ्वी पर भार हैं और मनुष्य के रूप में मृग/जानवर की तरह से घूमते रहते हैं।
  • बड़े भाग्य मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सद्ग्रंथन गावा॥
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा। पाय न जेहि परलोक संवारा॥ -- रामचरितमानस
  • नर तन सम नहिं कवनिउ देही। जीव चराचर जाचत तेही॥
नरक स्वर्ग अपबर्ग निसेनी। ग्यान बिराग भगति सुभ देनी॥ -- रामचरितमानस
मनुष्य शरीर के समान कोई शरीर नहीं है। चर-अचर सभी जीव उसकी याचना करते हैं। वह मनुष्य शरीर नरक, स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है तथा कल्याणकारी ज्ञान, वैराग्य और भक्ति को देने वाला है।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]