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पूजा

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पूजा अर्थात उपासना, अर्चना आदि।

उक्तियाँ

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  • अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूज्यानामवमानना ।
त्रीणि तत्र प्रवर्तन्ते दुर्भिक्षं मरणं भयम् ॥ -- शिवपुराण
जहाँ अपूज्य लोगों की पूजा होती है और पूज्यों का अपमान होता है, वहाँ तीन चीजें होतीं हैं- दुर्भिक्ष (अकाल), मरण और भय।
  • वीरः वीरेण पूज्यते
वीर, वीर की पूजा करता है।
  • विद्वतं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान सर्वत्र पूज्यते॥
राजा की पूजा अपने देश में होती है लेकिन विद्वान की पूजा सर्वत्र होती है।
  • दुष्टस्य दण्डः सुजनस्य पूजा न्यायेन कोषस्य च संप्रवृद्धिः ।
अपक्षपातोऽर्थिषु राष्ट्ररक्षा पञ्चैव यज्ञाः कथिता नृपाणाम्॥
दुष्ट को दण्ड देना, स्वजनों की पूजा करना, न्यायपूर्वक कोश बढ़ाना, पक्षपात न करना, और राष्ट्र की रक्षा करना – ये पाँच राजा के यज्ञ कहे गये हैं।
  • सत्यहीना वृथा पूजा सत्यहीनो वृथा जपः ।
सत्यहीनं तपो व्यर्थमूषरे वपनं यथा ॥
जिस प्रकार ऊसर भूमि में बीज बोना व्यर्थ है, वैसे ही सत्य के बिना पूजा करना व्यर्थ है, सत्य के बिना जप करना व्यर्थ है, और सत्य के बिना तप करना व्यर्थ है।
  • पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़ ।
याते ये चाकी भली, पीस खाए संसार ॥ -- कबीरदास
यदि पत्थर पूजने से ईश्वर मिले तो मैं पहाड़ की पूजा करूँ, इससे तो अपने घर की चक्की ही अच्छी है जिससे सारा संसार आटा पीस कर खाता है।
  • किसी की पूजा इसलिए नहीं करनी चाहिये क्योंकि वो किसी पूजनीय पद पर बैठा है। यदि उस व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसकी पूजा नहीं करनी चाहिये। -- सन्त रविदास
  • किसी व्यक्ति की नही व्यक्तित्व की पूजा करो। चित्र की नही चरित्र की पूजा करो। -- बाबा रामदेव
  • भय से भक्ति सब करै, भय से पूजा होय।
भय पारस है जीव को, निरभय होय न कोय॥ -- कबीरदास
मनुष्य भय के कारण ईश्वर की पूजा करता है। भय ही जीव का पारसमणि है। कोई निर्भय न हो।
  • हो सकता है कि धरती पर हमारी भूमिका भगवान की पूजा करना नहीं है बल्कि उसकी रचना करना है। -- आर्थर सी० क्लार्क
  • जो भलाई से प्रेम करता हैं, वह देवताओं की पूजा करता है, जो आदरणीयों का सम्मान करता है, वह ईश्वर के पास रहता हैं। -- इमर्सन

इन्हें भी देखें

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