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दंभ

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"दम्भ" शब्द का संस्कृत में अर्थ है - दिखावा, घमंड, या आडंबर। किसी प्रकार की न योग्यता होते हुए भी अपने को बड़ा कहना या दिखाना। मान, बड़ाई, पूजा, ख्याति आदि प्राप्त करनेके लिये अपनी वैसी स्थिति न होने पर भी वैसी स्थिति दिखाने का नाम दम्भ है। अहंतावाली चीजों को लेकर अर्थात् स्थूल, सूक्ष्म और कारणशरीर को लेकर अपने में जो बड़प्पन का अनुभव होता है, उसका नाम अभिमान है।

दम्भ को "असुरों की संपत्ति" के लक्षणों में गिनाया गया है।

उक्तियाँ

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  • दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्॥ -- गीता
हे पृथानन्दन ! दम्भ करना, घमण्ड करना, अभिमान करना, क्रोध करना, कठोरता रखना और अविवेक का होना भी -- ये सभी आसुरी सम्पदा को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण हैं।
  • अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत् ।
इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम्॥ -- गीता
परन्तु हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन जो यज्ञ फल की इच्छा को लेकर अथवा दम्भ (दिखावटीपन) के लिये भी किया जाता है, उसको तुम राजस समझो।
  • काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः।
मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः॥ -- गीता
कभी पूरी न होनेवाली कामनाओं का आश्रय लेकर दम्भ, अभिमान और मदमें चूर रहनेवाले तथा अपवित्र व्रत धारण करनेवाले मनुष्य मोह के कारण दुराग्रहों को धारण करके संसार में विचरते रहते हैं।
  • अकल्को निरारम्भो लघ्वाहारो जितेन्द्रियःl
विमुक्तः सर्वपापेभ्यः स तीर्थफलमश्नुते ॥
जो दम्भ आदि दोषों से रहित हो, कर्तृत्व के अहंकार से रहित हो, अल्पाहारी और जितेन्द्रिय हो, वह सभी पापों से मुक्त होकर तीर्थ सेवन का फल पाता हैl
  • मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं तथा।
क्रोधस्य दृढ़वादश्च परवाक्येषवनादरः॥
मूर्खों के पांच चिन्ह (लक्षण) होते हैं : (१) गर्व (दंभ) - अपने आप को तीसमारखां समझना , (२) दुर्वचन (अपशब्द) - गाली गलौज करना , (३) क्रोध (गुस्सा) - बात-बेबात गुस्सा करना , (४) दृढ वाद (कुतर्क) (५) परवाक्येष्वनादरः (अन्य के वचनों का अनादर)।
  • प्रेम बिना जो भक्ति है, सो निज दंभ विचार।
उदर भरन के कारने, जन्म गंवाया सार॥ -- कबीरदास
प्रेम के बिना जो भक्ति है, वह व्यक्ति का मात्र दाम्भिक विचार है। उदर भरने के लिये जन्म का सार गंवा दिया।
  • साधो, देखो जग बौराना।
साँची कहौ तो मारन धावै झूँठे जग पतियाना।
हिंदू कहत है राम हमारा मुसलमान रहमाना।
आपस में दोउ लड़े मरतु हैं मरम कोई नहिं जाना।
बहुत मिले मोहिं नेमी धर्मी प्रात करैं असनाना।
आतम छोड़ि पषानैं पूजैं तिनका थोथा ज्ञाना।
आसन मारि डिंभ धरि बैठे मन में बहुत गुमाना।
पीपर-पाथर पूजन लागे तीरथ-बर्न भुलाना।
माला पहिरे टोपी पहिरे छाप-तिलक अनुमाना।
साखी सब्दै गावत भूले आतम ख़बर न जाना।
घर घर मंत्र जो देत फिरत हैं माया के अभिमाना।
गुरुवा सहित सिष्य सब बूड़े अंतकाल पछिताना।
बहुतक देखे पीर औलिया पढ़ैं किताब क़ुराना।
करैं मुरीद कबर बतलावैं उनहूँ ख़ुदा न जाना।
हिंदु की दया मेहर तुरकन की दोनों घर से भागी।
वह करै जिबह वाँ झटका मारै आग दोऊ घर लागी।
या बिधि हँसत चलत हैं हमको आप कहावैं स्याना।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, इनमें कौन दिवाना॥ -- कबीरदास
देखो साधु, सारी दुनिया पागल हो गई है। सच्ची बात कहो तो मारने को दौड़ते हैं लेकिन झूठ पर सबका विश्वास है। हिंदू राम का नाम लेता है और मुसलमान रहमान का और दोनों आपस में इस बात पर लड़ते-मरते हैं लेकिन सच्चाई से कोई भी परिचित नहीं। मुझे धर्म और उसके नियमों के मानने वाले बहुत मिले जो प्रातःकाल स्नान करते हैं और आत्मा को छोड़कर पत्थर की पूजा करते हैं। उनका ज्ञान झूठा है। दंभ धारण करके आसन लगाकर बैठते हैं और उनका मन अहंकार में डूब जाता है, जिसके कारण वह पत्थर और पीपल को पूजते हैं, माला और टोपी पहनकर तिलक और छापा लगाते हैं। उपदेश देते-देते वह आत्मा से बेख़बर हो गए हैं। जो गुरु माया के घमंड में घर-घर मंत्र सुनाते फिरते हैं, वे गुरु और उनके चेले सब डूब चुके हैं। उनके पास पछतावे के सिवा कुछ नहीं है। मैंने पीर और औलिया बहुत देखे हैं जो किताब और क़ुरान पढ़ते रहते हैं। वह क़ब्र दिखाकर लोगों को मुरीद बनाते हैं। ज़ाहिर है कि उन्होंने ख़ुदा को नहीं पहचाना है। हिंदू की दया और मुसलमानों की मुहब्बत, दोनों उनके घरों से निकल गई हैं। एक जानवर को ज़िबह करता है और दूसरा झटका करता है लेकिन आग दोनों के घर में लगी है। इस तरह वह हम पर तो हँसते हैं और ख़ुद सियाने कहलाते हैं। कबीर कहते हैं, ए साधु, तुम ही बताओ इन दोनों में कौन दिवाना है।
  • विप्र द्रोह पर द्रोह बिसेसा । दंभ कपट जिए धरें सुवेसा ॥ -- रामचरितमानस
  • दंभ का हमारे स्वभाव से वैसा ही सम्बन्ध है जैसा कि रंग का सौंदर्य से, यह न केवल अनावश्यक है, लेकिन, यह हममें हो रहे सुधार को भी क्षीण कर देता है। -- पोप
  • अपने कुल चिन्ह के बारे में डींग और शक्ति का प्रदर्शन। और समग्र सौंदर्य, सारा प्राप्त धन, अपरिहार्य घंटे की तरह इंतजार करता है। महिमामंडित मार्ग जाते तो हैं लेकिन कब्र की ओर। -- थॉमस ग्रे
  • एक अभिमानी आदमी से कौन घृणा नहीं करता है। -- यूरीपिडेस
  • एक व्यक्ति जितना ज्यादा अपने बारे में बोलता है, उसे दूसरे के बारे में सुनने में उतनी ही कम दिलचस्पी होती है। -- जोहान कास्पर लावाटर
  • दंभ सबसे कमजोर शरीर का सबसे मजबूत कार्य है। -- विलियम शेक्सपियर
  • वह उस मुरगे की तरह था, जिसने सोचा कि सूरज उसके बांग देने के कारण ही निकला। (जहाँ मुर्गा नहीं वहां विहान नहीं?) -- जॉर्ज इलियट
  • दंभ अपनी बुद्धि से अधिक बातचीत करता है। -- डुक डे ला रोचेफौकाउल्ड
  • मैं अविश्वसनीय रूप से उत्सुक हूँ – कि जो इतिहास आप लिख रहे हैं उसमें मेरा नाम और मेरी बार-बार प्रशंसा प्रमुखता से दिया जाना चाहिए। -- मारकस टुल्लीअस सिसरो
  • जब भगवान ने आदमी का आविष्कार किया, वह उसे मेरे जैसा देखना चाहता था। -- ब्रायन ओल्डफील्ड
  • एक ईश्वर नहीं हो सकता क्योंकि अगर वह एक है, मुझे विश्वास नहीं होता कि वह मैं नहीं हूँ। -- फ्रेडरिक नीत्शे
  • वाहवाही की भूख सभी चेतन साहित्य और वीरता का स्रोत है। -- डुक डे ला रोचे फौकाउल्ड
  • कोई भी मेरे साथ बहस क्यों नहीं करना चाहता? इसलिए क्योंकि मैं हमेशा सही होता हूँ। -- जिम बोउसन
  • आम तौर पर लोग अपने द्वारा खोजे गए कारणों से ज्यादा आश्वस्त होते हैं बनिस्वत दूसरों के द्वारा खोजे गए कारणों के। -- ब्लेज़ पास्कल
  • हमें ईश्वर से अधिक महान होना चाहिए, क्योंकि हमें उसके अन्याय को पूर्ववत रखना चाहिए। -- जूल्स रेनार्ड
  • यह एक प्रकार का आध्यात्मिक दंभ है कि लोगों को लगता है कि वे पैसे के बिना खुश रह सकते हैं। -- अल्बर्ट कामू

इन्हें भी देखें

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