अनुमान
अनुमान का अर्थ है - ज्ञात तथ्यों के आधार पर अज्ञात के बारे में कथन। अन्दाज । न्यायदर्शन सहित अधिकांश दर्शनों में अनुमान को एक प्रमाण माना गया है।
भारतीय दर्शन में अनुमान दूसरा सबसे महत्वपूर्ण प्रमाण है । यदि चार्वाक को छोड़ दें तो भारतीय दर्शन की प्रत्येक शाखा ने अनुमान को एक स्वतंत्र प्रमाण के रूप में स्वीकार किया है। अनुमान का शाब्दिक अर्थ होता है - 'बाद का ज्ञान'। यह ज्ञान प्रत्यक्ष के बाद होता है । यह महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि जो ज्ञान प्रत्यक्ष के द्वारा प्राप्त नहीं कर सकते, अनुमान के द्वारा प्राप्त कर लेते हैं। प्रमाणमीमांसा में अनुमान के विभिन्न अंगों, अनुमान का आधार व्याप्ति तथा इसके प्रकारों का वर्णन हुआ है।[१]
अनुमान शब्द दो शब्दों अनु +मान से मिलकर बना है। 'अनु' का अर्थ पश्चात् और 'मान' का अर्थ ज्ञान होता है। अनुमान का अर्थ है वह ज्ञान जो एक ज्ञान के बाद आये। अनुमान प्रत्यक्ष पर आधारित ज्ञान है। अनुमान वह ज्ञान है जिसमे प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर जाया जाता है। विभिन्न दर्शनों में अनुमान की विवेचना की गई है।
अनुमान ज्ञान प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है। प्रत्यक्ष और तर्क के द्वारा अप्रत्यक्ष की सिद्धि अनुमान प्रमाण का उद्देश्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारतीय दर्शन में अनुमान संबंधी विभिन्न विचारों को एकत्र कर प्रस्तुत किया गया है।
न्याय दर्शन मे अनुमान का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया गया है। प्रयोजन की दृष्टि से अनुमान के दो भेद किये गये है- ( 1 ) स्वार्थानुमान (2) परार्थानुमान । परार्थानुमान दूसरों को समझाने के लिये है। परार्थानुमान पंचावयव वाक्य द्वारा प्रकट किया जाता है जिन्हें प्रतिज्ञा, हेतु,उदाहरण, उपनय और निगमन कहते है। प्रतिज्ञावाक्य में पक्ष मे साध्य अर्थात सिद्ध की जानेवाली वस्तु का निर्देश होता है। हेतु वाक्य मे अनुमान को सिद्ध करने वाले कारण का या साधन का निर्देश होता है। उदाहरण वाक्य मे हेतु और साध्य के व्याप्तिसम्बन्ध का अर्थात उनके नियतसाहचर्यनियम का उदाहरण सहित उल्लेख होता है । उपनय वाक्य में व्याप्ति - विशिष्ट पक्षधर्मता का ज्ञान होता है। पञ्चम वाक्य निगमन या निष्कर्ष है जिसमें प्रतिज्ञा की सिद्धि होती है.
चार्वक दर्शन अनुमान को प्रमाण के रूप में स्वीकार नही करता उनका कहना है कि अनुमान को हम प्रमाण तभी मान सकते है जब इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान संशय-रहित तथा वास्तविक हो ऐसा ज्ञान केवल प्रत्यक्ष से ही संभव है। किंतु अनुमान में इन बातों का सर्वथा अभाव है। चार्वाक का कहना है कि अनुमान तभी युक्तिपूर्ण तथा निश्चयात्मक हो सकता है जब व्याप्ति वाक्य सर्वथा निःसंदेह हो क्योंकि व्याप्ति वाक्य मे ही लिंग का साध्य के साथ पूर्ण व्यापक संबंध स्थापित रहता है।
उक्तियाँ
[सम्पादन]- अथ तत्पूर्वकं त्रिविधम् अनुमानम् पूर्ववत् शेषवत् सामन्यतोदृष्टं च ॥ -- महर्षि गौतम, न्याय सूत्र
- अब अर्थात् प्रत्यक्ष प्रमाण के लक्षण करने के पश्चात् (तत्पूर्वकम् ) प्रत्यक्षपूर्वक होने वाले उस अनुमान की बात करते हैं जो तीन प्रकार का होता है - पूर्ववत् , शेषवत् तथा सामान्यतोदृष्ट ।
- युद्ध का सारा काम, और वास्तव में जीवन का सारा काम, उसको जानने का प्रयास है जो आप नहीं जानते हैं। इसे ही मैं "पहाड़ी के दूसरी ओर क्या है, इसका अनुमान लगाना" कहता हूँ। -- आर्थर वेलेजली (Arthur Wellesley) 4 September 1852