मोहनदास करमचंद गांधी

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मोहनदास करमचंद गांधी

मोहनदास करमचन्द गांधी (2 अक्टूबर 1869 - 30 जनवरी 1948) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया।

महात्मा गांधी पर महापुरुषों के विचार[सम्पादन]

  • भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था। --अल्बर्ट आइंस्टीन
  • गांधी हमेशा मुझे एक प्रेरणा-पुंज की तरह रास्ता दिखाते रहे। -- नेल्सन मान्डेला
  • ईसा मसीह ने हमें लक्ष्य दिए और महात्मा गांधी ने हमें उन्हें प्राप्त करने के तरीके बताए। -- मार्टिन लूथर किंग जूनियर
  • दशकों के अभियान में गांधी ने जो हासिल नहीं किया था, बोस की आजाद हिन्द फौज ने दो साल से भी कम समय में हासिल कर लिया और अंग्रेजों को भारत छोड़ने का फैसला करना पड़ा। और उसकी यह उपलब्धि वास्तव में बहुत अधिक गोलियां चलाए बिना मिल गयी। यदि आप शक्ति विकीर्ण करते हैं, तो आपको अक्सर इसका उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती है। दरबारी इतिहासकारों ने हमेशा आजाद हिन्द फौज की भूमिका को कमतर आंका है और स्वतंत्रता की उपलब्धि का श्रेय महात्मा गांधी को दिया है। -- के एल्स्ट (Elst, K.), 'सुभाष बोस विन्डिकेटेद' में (हिन्दू ह्यूमन राइट्स, प्रयाग तथा स्वराज्य, अप्रैल 2019)[१]
  • मेरा अपना विचार है कि महापुरुष अपने देश के लिए महान सेवा के होते हैं, लेकिन वे निश्चित समय के बाद कभी कभी देश की प्रगति में बाधा भी बनते हैं। मि० गांधी इस देश के लिए एक निश्चित खतरा बन गए थे। उन्होंने सभी के विचारों को घुट कर रख दिया था। वह कांग्रेस के साथ खड़े हुए थे, वो काँग्रेस, जो समाज के सभी बुरे और स्वार्थसेवी तत्वों का एक संयोजन है, जो सिवाय प्रशंसा और चापलूसी के, समाज-जीवन को नियंत्रित करने वाले किसी भी सामाजिक या नैतिक सिद्धांत पर सहमत नहीं हैं। इस तरह की संस्था किसी भी देश पर शासन करने के लिए अयोग्य है।
जैसा कि बाइबल कहती है, कि कभी-कभी अच्छाई, बुराई से ही बाहर आती है, इसलिए मुझे भी लगता है कि मि० गांधी की मौत से अच्छा ही निकलेगा। यह लोगों को बंधन से निकाल कर, उन्हें खुद के लिए सोचने के लिए और उनकी योग्यता के आधार पर खड़े होने के लिए मजबूर करेगा। -- भीमराव अम्बेडकर, गांधी की हत्या के लगभग एक सप्ताह बाद लिखे एक पत्र में, स्रोत - 'लेटर्स ऑफ अंबेडकर', पेज़ नं० 205 , लेखक - सुरेन्द्र अजनात
  • गांधी कभी भी महात्मा नहीं थे, मैं उन्हें महात्मा नहीं मानता। -- भीमराव अम्बेडकर, सन 1955 में BBC से साक्षात्कार में
  • मेरी तरह किसी को भी गांधीजी के प्रति एक प्रकार की सौन्दर्यपरक अरुचि महसूस हो सकती है, कोई उनकी ओर से किए गए संतत्व के दावों को अस्वीकार कर सकता है, कोई आदर्श के रूप में संतत्व को भी अस्वीकार कर सकता है और इसलिए महसूस कर सकता है कि गांधी के मूल उद्देश्य मानव-विरोधी और प्रतिक्रियावादी थे। लेकिन यदि उन्हें उन्हें केवल एक राजनेता के रूप में देखा जाय, और हमारे समय के अन्य प्रमुख राजनीतिक हस्तियों की तुलना में, वह कितनी साफ गंध छोड़ने में कामयाब रहे! -- जॉर्ज ओरवेल, गांधी के बारे में लिखते हुए, १९४९

महात्मा गांधी की सूक्तियाँ[सम्पादन]

अनुशासन[सम्पादन]

  • अनुशासन केवल सैनिक के लिए नहीं होता है बल्कि जीवन के हर क्षेत्र के लिए होता है।
  • अनुशासन के बिना न तो राष्ट्र, न ही कोई संस्था और न ही कोई परिवार चल सकता है। अनुशासन इन सबको बांधे रखता है और इनके प्रगति की सीढ़ी है।
  • बाहरी दुनिया की तरह अपने मन और शरीर को भी अनुशासन में रखना चाहिए।
  • किसी भी राष्ट्र का परिचय वहां के अनुशासित लोगो से पता चलता है।
  • अनुशासन शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के होते है। ये दोनों ही किसी भी व्यक्ति के प्रशिक्षण के लिए ज़रूरी होता है।

अस्पृश्यता[सम्पादन]

  • अगर आत्मा और इस्वर एक है तो फिर अछूत और अस्पृश्य कोई हो ही नहीं सकता है।
  • अस्पृश्य वह है जो झूठ बोलता है और पाखंड करता हो।
  • मै पूवर्जन्म की इच्छा नहीं रखता पर मुझे अगर फिर से जन्म लेना हो तो मै एक अछूत के घर जन्म लेना चाहूंगा, जिससे मै उनके कष्ट को बाँट सकूँ।

खादी[सम्पादन]

  • हिन्दुस्तान सबसे पहले अपनी पोशाक और भाषा को अपनाये।
  • गांव की जरुरत की हर चीज़ गांव में ही बननी चाहिए। खादी इसकी पहली सीढ़ी है।
  • खादी का मतलब है देश के सभी लोगो की आर्थिक समानता और स्वतन्त्रा का आरंभ है।

डर और अभय[सम्पादन]

  • जब यह शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है तो भय किसका और किसलिए।
  • अभय रहने से मनुष्य का कोई भी, कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है।
  • बल तो निडरता में है, आपके शरीर से इसका कोई मतलब नहीं है।
  • अगर इस शरीर से ममता छूट जाय तो आसानी से हम अभय को उपलब्ध हो जायेगे।
  • जो भगवान पर विश्वास रखते है वे अभय हो जाते है।
  • संसार में आधे से अधिक लोग इस लिए सफल नहीं हो पाते है। क्योकि उनमें साहस का संचार नहीं हो पता है और वे भयभीत हो जाते है।

ग़लती[सम्पादन]

  • हमें यह सोचने की ग़लती नहीं करनी चाहिए कि हम कभी भूल नहीं कर सकते है।
  • ग़लती मान लेना, झाड़ू लगाने के समान है। यह गंदगी को बहारकर, सतह को साफ़ कर देता है।
  • भूल करके आदमी सीखता तो है पर इसका यह मतलब नहीं कि जीवन भर भूल ही करता जाय और कहे कि हम सीख रहे है।
  • अपनी गलती से इन्सान बहुत कुछ सीख सकता है, बशर्ते वह इसके लिए तैयार हो।
  • सच्चा मनुष्य वही है, जो अपनी ग़लती को मान ले और फिर उसे त्याग कर अपने में सुधार करे।

गो-सेवा[सम्पादन]

  • गाय जैसे निरीह और उपयोगी पशु का वध करना राष्ट्र के लिए आत्मधात के समान है।
  • गो-सेवा करना अपने आप की सेवा करने के समान है।
  • गाय हिन्दू-जीवन की अहिंसकता और सादगी का प्रतीक है।

असहयोग[सम्पादन]

  • असहयोग एक बड़ा अस्त्र है। असहयोग का पालन तलवार की धार पर चलने के समान है।
  • असहयोग कोई निष्क्रिय (आलसी) की स्थिति नहीं है बल्कि एक सक्रिय स्थिति है। यह हिंसा से कही अधिक क्रियाशील है।
  • मैं काम करने के तरीकों, पद्धतियों और प्रणालियो से असहयोग करता हु, न की मनुष्य से।
  • असहयोग में तो इतनी शक्ति है की छोटी से छोटी इकाइयो (परिवार) को भी भंग कर सकता है।

चिन्ता[सम्पादन]

  • चिंता एक डायन है जो शरीर को खा जाती है।
  • चिंता मुक्ति पूर्ण समपर्ण से संभव है।
  • चिंता मनुष्य की शक्तियो को शून्य कर देती है, इसलिए इसे त्याग देना चाहिए।

तपस्या[सम्पादन]

  • तप से संसार बड़ी से बड़ी सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।
  • तप के बिना त्याग अधूरा ही रहता है।
  • तप से मनुष्य मन के उच्च स्तर तक पहुंच सकता है।

अहिंसा[सम्पादन]

  • उस जीवन को नष्ट करने का हमें कोई अधिकार नहीं है जिसके बनाने की शक्ति हम में न हो।
  • अहिंसा का नियम है कि मर्यादा पर कायम रहना चाहिए। कभी भी अभिमान नहीं करनी चाहिए और हमेशा नर्म रहना चाहिए।
  • अहिंसा प्रेम की पराकाष्ठा है।
  • जहां अहिंसा है, वहां धीरज, भीतरी शांति, भले बुरे का ज्ञान और जानकारी भी है।
  • अहिंसा निर्बल और डरपोक का नहीं, वीर का धर्म है।
  • किसी को कभी भी नहीं मारना और किसी को कभी नहीं सताना ही अहिंसा है।
  • अहिंसा में इतनी ताकत है कि यह आपके विरोधियों को भी मित्र बना लेती है।
  • अहिंसा और कायरता परस्पर विरोधी शब्द है।
  • जहां दया नहीं वहां अहिंसा नहीं हो सकती है। जितना ज्यादा दया होगी उतनी ज्यादा अहिंसा होगा।
  • बिना अहिंसा के सत्य की खोज असंभव है।
  • जो अहिंसा पर अंत तक डटा रहेगा, उसकी विजय निश्चित है।
  • हिंसा का परिणाम जल्दी आता है जबकि अहिंसा का परिणाम देर से आता है।

उपवास[सम्पादन]

  • उपवास का धमकी के रूप में उपयोग करना बुरा है।
  • उपवास तो आखरी हथियार है वह अपनी या दूसरों की तलवार की जगह लेता है।
  • उपवास शारीरिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आवश्यक सहयोग है।

किसान[सम्पादन]

  • अगर भारत को शांतिपूर्ण सच्ची प्रगति करनी है तो पैसे वाले यह समझ ले कि किसानों में ही भारत की आत्मा बसती है।
  • किसानों का शहर की ओर भागना उसकी असफलता का ढिंढोरा है। ऐसा करके वह न तो घर का रहेगा न घाट का।

आहार[सम्पादन]

  • आहार संतुलित और विवेकपूर्ण हो तो शरीर में कोई रोग हो ही नहीं सकता है।
  • आहार शरीर के लिए है न कि शरीर आहार के लिए।
  • पशु-पक्षी स्वाद के लिए भोजन नहीं करते है, न ही वे इतना खाते कि पेट फटने लगे। वे भोजन को स्वयं नहीं पकाते है । प्रकृति जैसा देती है वैसे ग्रहण कर लेते है।
  • संसार में जितने लोग भूख से नहीं मरते उससे ज्यादा लोग अधिक भोजन करने से मरते है।
  • इंसान की शारीरिक बनावट देखने से यह पता चलता है प्रकृति ने मनुष्य को शाकाहारी बनाया है।
  • अगर हम आहार विवेकपूर्ण नहीं करेंगे तो हममें और पशु में कोई अंतर नहीं है।
  • जब तक आहार में स्वाद की प्रधानता रहेगी तब तक उसमे सात्विकता आ ही नहीं सकता है।

शिक्षा[सम्पादन]

  • मै उच्च शिक्षा उसी को कहूंगा जिसे पाकर इन्सान विनम्र, परोपकारी, सेवाभावी और कार्यतत्पर बन जाय।

क्रांति[सम्पादन]

  • क्रन्तिकारी की प्रशंसा मै तभी करूँगा, यदि वह अहिंसक है।
  • क्रांति तो युगों के बाद आती है और वह मनुष्य को सजग कराने और सुधारने के लिए आती है।

ईश्वर[सम्पादन]

  • मनुष्य को प्रयत्न करना चाहिए और ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए।
  • जिसको ईश्वर बचाना चाहता है, उसे कौन मिटा सकता है।
  • जिस ईश्वर ने अपने लाखों लोगों की सहायता की है, वह क्या तुम्हें छोड़ देगा।
  • ईश्वर की इस दुनियाँ में कहीं भी सदा रात नहीं रहती है।
  • जब तक ईश्वर हमारी रक्षा करता है, मारनेवाला कितना भी बलवान हो, हमें मार नहीं सकता।
  • हम सोते है तब भी ईश्वर हमारी चौकीदारी करता है। फिर हम क्यों डरे?
  • जो ईश्वर में विश्वास रखता है, वह बीमारी का भी सद्पयोग कर लेता है। वह बीमारी से कभी नहीं हारता है।
  • जहां प्रेम है, वहीं ईश्वर है।
  • मै मानवता की सेवा के माध्यम से ही ईश्वर का साक्षात्कार का प्रयास कर रहा हु। क्योकि मै जानता हुं कि ईश्वर न तो स्वर्ग में है और न ही पाताल में है, वह हर किसी के दिल में मौजूद है।

गीता[सम्पादन]

  • गीता तो रत्नों की खान है।
  • मन पर निंयत्रण करना सबसे कठिन काम है। इसके लिए उत्तम उपाय गीता का अध्ययन करना है।
  • अगर मुझे संसार की एक सर्वश्रेष्ठ पुस्तक चुनना हो तो मै गीता को चुनुँगा।

देशभक्ति[सम्पादन]

  • देशभक्ति मनुष्य का पहला गुण है। इसके बिना वह दुनियाँ में सिर उठाकर नहीं चल सकता।
  • दुनिया में देशभक्तो ने आज़ादी का मार्ग प्रशस्त किया है।

क्रोध[सम्पादन]

  • क्रोध से बदले की भावना बढ़ती है और उसके भयंकर परिणाम होते है।
  • क्रोध पाप का मूल कारण है।
  • हम जन्तुओ को तो मार डालते है पर अपने सीने में छिपे क्रोध को नहीं मारते, जो सचमुच मारने की चीज़ है।
  • क्रोध को जीतने में ही सच्ची मर्दानगी है।
  • क्रोध ख़ुद को तो जलाता ही है आसपास के संबद्ध लोगो भी पीड़ित कर देता है।
  • क्रोध एक प्रकार का रोग है जिसे क्षणिक पागलपन भी कह सकते है।
  • क्रोध के बिना मनुष्य देवता के सामान है।

नवयुवकों[सम्पादन]

  • देश के युवक अगर चाहें तो वे बड़े से बड़े सत्कार्य आसानी से सम्पन्न कर सकते है।
  • युवकों को अपने जोश का उपयोग होश के साथ करना चाहिए।

नियमितता[सम्पादन]

  • अगर कोई मनुष्य अपना काम नियमित रूप से नहीं करता है, तो उसे सफ़लता नहीं मिल सकती।
  • नियमितता सफलता की जननी है।
  • नियमितता जीवन की एक कसौटी है।
  • बूंद-बूंद से तालाब इसलिए भरता है क्योकि यह काम नियमित रूप से होता है।
  • नियमितता के द्वारा मनुष्य बड़े से बड़ा सम्पन्न कर सकता है।

चरखा[सम्पादन]

  • चरखा भारत की आर्थिक आज़ादी का प्रतीक है।
  • चरखे के बिना दूसरे उद्योग नहीं चल सकते है, वैसे ही जैसे यदि सूरज डूब जाए तो दूसरे ग्रह भी डूब जायेगे।
  • चरखा तो लंगड़े की लाठी है।
  • चरखा अहिंसा का प्रतीक है।
  • खेती किसान का धड़ है और चरखा हाथ-पैर।
  • मेरे लिए चरखे से अधिक प्रिय वस्तु कोई नहीं है।

चरित्र-निर्माण[सम्पादन]

  • चरित्र की संपत्ति दुनिया की सारी दौलत से बढ़कर है।
  • चरित्र की रक्षा किसी भी मूल्य पर होनी चाहिए।
  • चरित्र की सीढ़ी है सदाचरण।
  • चरित्र जीवन की सबसे मूल्यवान वस्तु है।
  • वयक्ति के चरित्र से ही राष्ट्र का अंदाजा लगाया जा सकता है।
  • शिक्षा का उद्देश्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। शिक्षा वही है जिसके द्वारा साहस का विकास हो, गुणों में वृद्धि हो और ऊंचे उदेश्यों के प्रति लगन जागे।

धर्म[सम्पादन]

  • धर्म की परीक्षा दुःख में ही होती है।
  • जो धर्म सत्य और अहिंसा का विरोधी है, वह धर्म नहीं है।
  • धर्म तो उत्कृठ श्रद्धा का नाम है।
  • संकट के समय धर्म ही मनुष्य को उबार सकता है।
  • धर्म भगवान तक पहुँचने का सेतु है।
  • धर्महीन मनुष्य बिना पतवार की नाव के समान है।

प्रार्थना[सम्पादन]

  • प्रार्थना जीभ से नहीं होता है, ह्रदय से होता है। जो गूंगे और मूढ़ है, वे भी प्रार्थना कर सकते है।
  • प्रार्थना धर्म का प्राण और सार है।
  • प्रार्थना के बिना भीतरी शांति नहीं मिल सकती है।
  • प्रार्थना अपनी योग्यता और दुर्बलता को स्वीकार करना है।
  • प्रार्थना आत्मा की खुराक है।
  • प्रार्थना में असीम शक्ति है।
  • प्रार्थना याचना करना नहीं है, वह तो आत्मा की पुकार है।
  • प्रार्थना तभी प्रार्थना है, जब वह अपने आप से निकलती है।
  • प्रार्थना पश्चाताप का एक चिन्ह है।
  • मै अपना कोई काम, बिना प्रार्थना किये नहीं करता हु।
  • प्रार्थना आत्मशुद्धि का सहज और सरल साधन है।
  • मुझे शांति और सफलता प्रार्थना के द्वारा ही मिली है।
  • प्रार्थना में तल्लीन हो जाना ही असली उपासना है।

नम्रता[सम्पादन]

  • नम्रता से मनुष्य के ऐसे बहुत से काम बन सकते है, जो कठोरता से नहीं होते है।
  • नम्रता मनुष्य का आभूषण है।
  • नम्रता अहिंसा का ही हिस्सा है।
  • नम्रता के पीछे स्वार्थ हो तो वह एक ढोंग है।

पुस्तकें[सम्पादन]

  • पुस्तकों का मूल्य रत्नो से भी अधिक है। क्योकि बाहरी चमक-दमक दिखाते है जबकि पुस्तकें अंतकरण को प्रकाशित है।
  • कुछ पुस्तकें मेरे जीवन के लिए मार्गदर्शिका बन गई, उनमे से एक एमर्सन की “अंटू डी लॉस्ट” है।
  • गीता का मेर ऊपर काफी प्रभाव रहा है।
  • मेरे लिए तुलसी दास की रामायण भक्तिरस का बेस्ट ग्रन्थ है।

प्रेम[सम्पादन]

  • जहां प्रेम है वहां परमात्मा है।
  • जहां प्रेम है, वहां डर का स्थान कहां ?
  • प्रेम की गंथि से ही जगत बंधा हुआ है।
  • प्रेम जैसी पवित्र चीज संसार में कोई और नहीं है।
  • प्रेम बारे में मेरा मानना यह है कि प्रेम फूल से भी कोमल और व्रज से ज्यादा कठोर होता है।

ब्रह्मचर्य[सम्पादन]

  • ब्रह्मचर्य का ठीक मतलब ब्रह्म की खोज है और यह खोज इंद्रियों के सम्पूर्ण संयम के बिना असंभव है।
  • ब्रह्मचर्य भी अन्य व्रतों के समान ही सत्य से निकलता है।
  • अहिंसा का पूरा पालन ब्रह्मचर्य के बिना नामुमकिन है।
  • ब्रह्मचर्य का पालन मन, वचन और कर्म से करना चाहिए।
  • ब्रह्मचारी को जीने के लिए ही खाना चाहिए।
  • ब्रह्मचर्य जीवन की पहली सीढ़ी है। इसके बिना आदमी शिखर तक नहीं पहुंच सकता है।

माता-पिता[सम्पादन]

  • माता-पिता कभी संतान का बुरा नहीं चाहते है इसलिए उनके बातो की कद्र करना चाहिए।
  • माता-पिता की सेवा पुत्र का प्रथम कर्तव्य है।
  • माता-पिता का ऋण संतान जिंदगी भर चूका नहीं सकता है।
  • संतान के लिए तो माता-पिता ही प्रथम गुरु और पूजनीय है।

बुद्धि[सम्पादन]

  • बुद्धि के बिना मनुष्य अपंग के समान है।
  • पहला ह्रदय है उसके बाद बुद्धि है।
  • जिसमे शुद्ध श्रद्धा है उसकी बुद्धि तेजस्वी होगी।
  • जो बुद्धि के परे है वहां श्रद्धा काम आती है।
  • बुद्धि तो ह्रदय की दासी है।
  • जिसमे बुद्धि नहीं है, उसमे बल नहीं है।
  • बुद्धि का दुरुपयोग हुआ तो दुनियाँ में बहुत सारे अनर्थ हो सकते हैं।

मौन[सम्पादन]

  • मौन से कलह का नाश होता है।
  • जहां तक हो सके वहां तक मौन ही रहना चाहिए। कभी भी एक भी शब्द बेकार नहीं बोलना चाहिए।
  • बोलना एक सुन्दर कला है लेकिन मौन उससे भी ऊंची कला है।
  • मौन के द्वारा इन्द्रियों पर नियंत्रण आसान हो जाता है।

लड़ाई[सम्पादन]

  • लड़ाई विनाश की जड़ है।
  • लड़ाई चाहें दो व्यक्तियो के बीच हो या दो राष्ट्रों के बीच में हो, उसकी तह में बर्बादी ही छिपा रहता है।
  • लड़ाई ने बड़े-बड़े राष्ट्रों के नामोनिशान मिटा देता है।
  • लड़ाई सभी उपद्रवों की जननी है।
  • लड़ाई मनुष्य की सबसे बरी शत्रु है।

मृत्यु[सम्पादन]

  • जिंदगी और मौत एक ही सिक्के के दो पहलु है। बिना उथल-पुथल के जीवन किस काम का।
  • मनुष्य के विकास के लिए जीवन जितनी ही मृत्यु का होना आवश्यक है।
  • मौत ईश्वर की अमर देंन है।
  • मौत कभी टाली नहीं जा सकती है, वह तो हमारा मित्र है।
  • मृत्यु जीवन की जननी है।
  • मृत्यु केवल निद्रा और विस्मृति है।
  • मृत्यु जीवन की माँ है।
  • मृत्यु हमारी जीवन संगिनी है, वह हमें नवजीवन का उपहार भी दे जाती है।

विद्यार्थी[सम्पादन]

  • विद्यार्थी को आलस्य से दूर रहना चाहिए।
  • विद्यार्थी भविष्य की आशा है।
  • विद्यार्थी अपने अंदर सेवा भाव विकसित करे।
  • विद्यार्थी-जीवन में पान, सिगरेट या शराब की आदत डालना आत्मघात के सामान है।
  • विद्यार्थी खादी पहने और स्वदेशी वस्तु का ही उपयोग करे।
  • विद्यार्थी को किसी न किसी महान व्यक्ति को अपने जीवन का आदर्श बनाए।

विश्वास[सम्पादन]

  • विश्वास से पहाड़ भी हिल सकता है।
  • अपना विश्वास कभी मत खोइए। उसे हमेशा बनाये रखे।
  • विश्वास के बिना मनुष्य उस बूंद के समान है जो समुद्र से अलग हो चुका है, जिसका नष्ट होना निश्चित है।
  • विश्वास के बिना कोई भी भी व्यवहार और व्यापार नही चल सकता है।

शिक्षा[सम्पादन]

  • जिस शिक्षा से आर्थिक, समाजिक और आध्यत्मिक मुक्ति मिलती है, वही वास्तविक शिक्षा है।
  • शिक्षा एक योग है।
  • शिक्षा का उदेश्य आत्मोन्नती होनी चाहिए।
  • संगीत के बिना शिक्षा अधूरी है।
  • शिक्षा का विषय चरित्र का निर्माण करना है।
  • शिक्षा के बिना मानव मस्तिष्क का विकास नहीं सकता है।
  • शिक्षा ऊंचा गुण है, लेकिन चरित्र उससे ऊपर है।

व्रत और संयम[सम्पादन]

  • कोई भी प्रतिज्ञा करना या व्रत करना बलवान का काम है, निर्बल का नहीं।
  • संयम के बिना व्रत असंभव है। संयम से व्रत पूरा करने बल मिलता है।
  • जो मनुष्य मन से दुर्बल होता है वह संयम का पालन नहीं कर पाता है लेकिन जिसके मन में लगन हो, वह अभ्यास से संयम-पालन सीख लेता है।

विवाह[सम्पादन]

  • विवाह दो वयक्तियों का आधात्मिक और शारीरिक मिलन है।
  • विवाह की उपेछा नहीं करनी चाहिए, उसे जीवन में उचित स्थान देना चाहिए।
  • विवाह की जिम्मेदारियों से भागना कायर का काम है।

सत्य[सम्पादन]

  • सत्य ही ईश्वर है।
  • पृथ्वी सत्य पर टिकी हुई है।
  • अगर सम्पूर्ण सत्य का पालन किया जाय, तो क्या नहीं हो सकता है।
  • अगर हमारे जीवन में सच्चाई है, तो यह लोगों को प्रभावित करेगा।
  • सत्य एक विशाल वृक्ष है। जिसकी जैसे-जैसे सेवा की जाती है वैसे-वैसे उसमें अनेक फल आते हुए दिखाई देते है।
  • सत्य के पालन में ही शांति है।
  • सत्य ही धर्म की सच्ची प्रतिष्ठा है।
  • सत्य न होता तो यह जगत भी न होता।
  • अपने आप को जान लेना सत्य को पहचानना है।

व्यायाम[सम्पादन]

  • व्यायाम, शरीर के लिए उतना ही आवश्यक है जितना हवा, पानी और भोजन।
  • व्यायाम शारीरिक स्वास्थ की कुंजी है।
  • व्यायाम के बिना दिमाग वैसे ही कमजोर पड़ जाता हैं, शरीर।
  • तंदुरुस्त दिमाग का तंदुरुस्त शरीर में होना ही निरोगता है।
  • शारीरिक और मानसिक व्यायाम एक सीमा के अंदर करना चाहिए।

शाकाहार[सम्पादन]

  • शाकाहार से हमारे अंदर हिंसात्मक विचार नहीं आते।
  • शाकाहार मनुष्य को निरोग और दीर्धजीवी बनाता है।
  • शाकाहार एक स्वाभाविक वृति है।

सत्याग्रह[सम्पादन]

  • सत्याग्रह बल-प्रयोग के बिलकुल विपरीत है। हिंसा के पूर्ण त्याग से ही सत्याग्रह की कल्पना की जा सकती है।
  • सत्याग्रह कभी भी व्यर्थ नहीं जाता।
  • सत्याग्रह करने से पहले मनुष्य को बहुत-सी तैयारियां करनी पडती है जिन्हे समझकर ही आगे बढ़ना चाहिए।
  • मेरा विश्वास है कि सत्याग्रह एक दिन विश्व शक्ति बन जायेगा।
  • मैंने बहुत सारे प्रयोग के बाद जिन दो अस्त्रों को पाया है, वह है सत्याग्रह और असहयोग।

शांति[सम्पादन]

  • शांति बाहर की किसी चीज़ से नहीं मिलती। वह आंतरिक है।
  • शांति तभी मिल सकती है, जब मनुष्य का वृतियों पर नियंत्रण हो।
  • अपनी आवश्यकताए कम करके आप वास्तविक शांति प्राप्त कर सकते है।
  • संसार की उथल-पुथल में रहते हुए भी जो मनुष्य अपनी मानसिक शांति को क़ायम रख सके, वही सच्चा पुरुष है।

श्रद्धा[सम्पादन]

  • जिसके पास श्रद्धा है उनके कंधों से सारी चिंताएं मिट जाती है।
  • जहां श्रद्धा नहीं, वहां धर्म नहीं। धर्म के मूल में श्रद्धा ही है।
  • श्रद्धा का अर्थ है आत्म्विश्वास, और आत्म्विश्वास का अर्थ है ईश्वर पर विश्वास।
  • श्रद्धा की कसौटी यह है कि अपना फर्ज अदा करने के बाद जो भी भला या बुरा होता है, उसे इन्सान स्वीकार कर ले।
  • श्रद्धा के बिना ज्ञान अधूरा है।
  • श्रद्धावान वही है जो कठिन परिस्तितियों में भी डिगे नहीं।

स्वदेशी[सम्पादन]

  • किसी भी भारतीय को स्वदेशी वस्तु के उपयोग के लिए उपदेश देना पड़े तो यह उसके लिए शर्म की बात है।
  • स्वदेशी वही है जो शुद्ध स्वदेशी हो।
  • स्वदेशी-व्रत निर्वाह तभी हो सकता है। जब विदेशी चीज़ का इस्तमाल न किया जाय।
  • स्वदेशी की भावना संसार के सभी स्वतंत्र देशों में है।

सफाई[सम्पादन]

  • अपना शरीर, भोजन और पानी के साथ-साथ अपने आसपास के स्थानों को भी साफ़ रखें।
  • भगवान के बाद सफाई ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।
  • जिसमे सफाई नहीं, उसके साथ कोई नहीं रहना चाहता।

सेवा[सम्पादन]

  • सेवा तो मूक होना चाहिए, उसका ढ़िढोरा पीटना चाहिए।
  • दृश्य ईश्वर क्या है? – ग़रीब की सेवा।
  • जो सेवा करेंगे उनका पतन नहीं हो सकता है।
  • मुझे सेवा धर्म प्रिय है।
  • सेवा का भी मोह हो सकता है। मोह भाव छोड़कर ही सच्ची सेवा की जा सकती है।
  • संसार में सेवा से बढ़कर मनुष्य को द्रवित करने वाली कोई और चीज़ नहीं है।

स्त्री[सम्पादन]

  • स्त्री को अबला कहना उसका अपमान है।
  • स्त्री अहिंसा मूर्ति है।
  • स्त्री अगर निर्भय हुई तो उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता।
  • स्त्री साक्षात् त्याग है।
  • स्त्री पुरुष की ग़ुलाम नहीं बल्कि सहधर्मणि, अर्धनगिनी और मित्र है।
  • स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक है।
  • किसी भी पुरुष का पर स्त्री से सम्बन्ध जोड़ना पाप है।
  • भारत के धर्म और संस्कृति को स्त्रीयों ने टिका रखा है।
  • स्त्री चाहें तो संसार को आनंदमय बना सकती है।

स्वास्थ्य[सम्पादन]

  • अगर स्वास्थ्य ठीक रखना है तो नियमित और सादा आहार ले और नशीली चीजों से दूर रहे।
  • शरीर संसार का एक छोटा सा नमूना है।
  • शरीर का निरोग और दीर्घायु होना विषय-रहित परिणाम है।
  • स्वस्थ वही है जो बिना थकान के दिन-भर शारीरिक और मानसिक मेहनत कर सके।
  • शरीर के स्वस्थ होने का मतलब यह है कि मनुष्य की इंद्रिया और मन भी स्वस्थ हो।
  • अच्छे स्वास्थ्य के लिए ब्रम्हचर्य का पालन बहुत जरुरी है।
  • हमें यह शरीर इसलिए मिला है कि हम इसे भगवान की सेवा में लगाएं। हमारा यह फर्ज़ है कि हम इसे शुद्ध और स्वस्थ रखें। जब समय आये इसे उसी भांति शुद्ध रूप में लौटा सके।

हरिजन[सम्पादन]

  • इसे मै अच्छा संकेत मानता हु कि हरिजन खुद जाग गये है।
  • केवल जन्म के कारण किसी मनुष्य अछूत नहीं माना जा सकता है।
  • अछूतो को अल्पमत नहीं माना जा सकता।
  • हरिजनों को खूब जोश के साथ अपने अंदर सुधार करना चाहिए जिससे किसी को यह कहने का हक़ न रहे कि उसके अंदर यह बुराई है।

ज्ञान[सम्पादन]

  • ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती।
  • बिना ज्ञान के सही स्वन्त्रन्ता नहीं मिलती।
  • ज्ञान ही प्रकाश है। उसके बिना हम एक कदम भी नहीं चल सकते है।
  • जो ज्ञान केवल दिमाग में ही रह जाता है और हृदय में प्रवेश नहीं नहीं कर पाता है। वह जीवन के अनुभव में व्यर्थ सिद्ध होता है।

विविध[सम्पादन]

  • वे ईसाई हैं, इससे क्या हिन्दुस्तानी नहीं रह और परदेशी बन गये ?
  • कितने ही नवयुवक शुरु में निर्दोष होते हुए भी झूठी शरम के कारण बुराई में फँस जाते होगे ।
  • उस आस्था का कोई मूल्य नहीं जिसे आचरण में न लाया जा सके। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १८०)
  • अहिंसा एक विज्ञान है। विज्ञान के शब्दकोश में 'असफलता' का कोई स्थान नहीं। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ ८१)
  • सार्थक कला रचनाकार की प्रसन्नता, समाधान और पवित्रता की गवाह होती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५६)
  • एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १५९)
  • मनुष्य अक्सर सत्य का सौंदर्य देखने में असफल रहता है, सामान्य व्यक्ति इससे दूर भागता है और इसमें निहित सौंदर्य के प्रति अंधा बना रहता है। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १८०)
  • चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो मातापिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७)
  • विश्व के सारे महान धर्म मानवजाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २५७)
  • अधिकारों की प्राप्ति का मूल स्रोत कर्तव्य है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७)
  • सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। 'अहिंसा' ही वह एकमात्र शक्ति है जिससे हम शत्रु को अपना मित्र बना सकते हैं और उसके प्रेमपात्र बन सकते हैं- -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २४३)
  • अधभूखे राष्ट्र के पास न कोई धर्म, न कोई कला और न ही कोई संगठन हो सकता है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २५१)
  • नि:शस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ २५२)
  • आत्मरक्षा हेतु मारने की शक्ति से बढ़कर मरने की हिम्मत होनी चाहिए। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३)
  • जब भी मैं सूर्यास्त की अद्भुत लालिमा और चंद्रमा के सौंदर्य को निहारता हूँ तो मेरा हृदय सृजनकर्ता के प्रति श्रद्धा से भर उठता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३०२)
  • वीरतापूर्वक सम्मान के साथ मरने की कला के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए परमात्मा में जीवंत श्रद्धा काफी है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३०२)
  • क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३९९)
  • एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और गलत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ १५८)
  • आपकी समस्त विद्वत्ता, आपका शेक्सपियर और वड्सवर्थ का संपूर्ण अध्ययन निरर्थक है यदि आप अपने चरित्र का निर्माण व विचारों क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७६)
  • वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब 'भाषा' है। -- (एविल रोट बाइ द इंग्लिश मिडीयम, १९५८ पृष्ठ १८)
  • स्वच्छता, पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३५६)
  • निर्मल चरित्र एवं आत्मिक पवित्रता वाला व्यक्तित्व सहजता से लोगों का विश्वास अर्जित करता है और स्वत : अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर देता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ५७)
  • जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन भक्ति है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ४३)
  • सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १९२)
  • अधिकार-प्राप्ति का उचित माध्यम कर्तव्यों का निर्वाह है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १७९)
  • उफनते तूफान को मात देना है तो अधिक जोखिम उठाते हुए हमें पूरी शक्ति के साथ आगे बढना होगा। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २८६)
  • रोम का पतन उसका विनाश होने से बहुत पहले ही हो चुका था। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३४९)
  • गुलाब को उपदेश देने की आवश्यकता नहीं होती। वह तो केवल अपनी खुशबू बिखेरता है। उसकी खुशबू ही उसका संदेश है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ७२)
  • जहां तक मेरी दृष्टि जाती है मैं देखता हूं कि परमाणु शक्ति ने सदियों से मानवता को संजोये रखने वाली कोमल भावना को नष्ट कर दिया है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ , पृष्ठ १)
  • मेरे विचारानुसार गीता का उद्देश्य आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग बताना है। -- (द मैसेज ऑफ द गीता, १९५९, पृष्ठ ४)
  • गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २७८)
  • मैं यह अनुभव करता हूं कि गीता हमें यह सिखाती है कि हम जिसका पालन अपने दैनिक जीवन में नहीं करते हैं, उसे धर्म नहीं कहा जा सकता है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३११)
  • हजारों लोगों द्वारा कुछ सैकडों की हत्या करना बहादुरी नहीं है। यह कायरता से भी बदतर है। यह किसी भी राष्ट्रवाद और धर्म के विरुद्ध है। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २५२)
  • साहस कोई शारीरिक विशेषता न होकर आत्मिक विशेषता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ६१)
  • संपूर्ण विश्व का इतिहास उन व्यक्तियों के उदाहरणों से भरा पडा है जो अपने आत्म-विश्वास, साहस तथा दृढता की शक्ति से नेतृत्व के शिखर पर पहुंचे हैं। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३)
  • हृदय में क्रोध, लालसा व इसी तरह की -----भावनाओं को रखना, सच्ची अस्पृश्यता है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३०)
  • मेरी अस्पृश्यता के विरोध की लडाई, मानवता में छिपी अशुद्धता से लडाई है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ १६८)
  • सच्चा व्यक्तित्व अकेले ही सत्य तक पहुंच सकता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २४८)
  • शांति का मार्ग ही सत्य का मार्ग है। शांति की अपेक्षा सत्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १५३)
  • हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६१)
  • यदि समाजवाद का अर्थ शत्रु के प्रति मित्रता का भाव रखना है तो मुझे एक सच्चा समाजवादी समझा जाना चाहिए। -- (महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ ३७)
  • आत्मा की शक्ति संपूर्ण विश्व के हथियारों को परास्त करने की क्षमता रखती है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १२१)
  • किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन् बेडियों में होती है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३१३)
  • ईश्वर इतना निर्दयी व क्रूर नहीं है जो पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के मध्य ऊंच-नीच का भेद करे। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३४)
  • नारी को अबला कहना अपमानजनक है। यह पुरुषों का नारी के प्रति अन्याय है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३३)
  • गति जीवन का अंत नहीं हैं। सही अथों में मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवित रहता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७)
  • जहां प्रेम है, वही जीवन है। ईष्र्या-द्वेष विनाश की ओर ले जाते हैं। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, ए तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७)
  • यदि अंधकार से प्रकाश उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७)
  • प्रेम और एकाधिकार एक साथ नहीं हो सकता है। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ११)
  • प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २६४)
  • यदि आप न्याय के लिए लड रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २०६)
  • मनुष्य अपनी तुच्छ वाणी से केवल ईश्वर का वर्णन कर सकता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९९९ पृष्ठ ४५)
  • यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी शीतलता प्रदान करेगी। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२)
  • युद्धबंदी के लिए प्रयत्नरत् इस विश्व में उन राष्ट्रों के लिए कोई स्थान नहीं है जो दूसरे राष्ट्रों का शोषण कर उन पर वर्चस्व स्थापित करने में लगे हैं। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २)
  • जिम्मेदारी युवाओं को मृदु व संयमी बनाती है ताकि वे अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने के लिए तैयार हो सकें। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७१)
  • विश्व को सदैव मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३३)
  • बुद्ध ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २९५)
  • हम धर्म के नाम पर गौ-रक्षा की दुहाई देते हैं किन्तु बाल-विधवा के रूप में मौजूद उस मानवीय गाय की सुरक्षा से इंकार कर देते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७)
  • अपने कर्तव्यों को जानने व उनका निर्वाह करने वाली स्त्री ही अपनी गौरवपूर्ण मर्यादा को पहचान सकती है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९४)
  • स्त्री का अंतर्ज्ञान पुरुष के श्रेष्ठ ज्ञानी होने की घमंडपूर्ण धारणा से अधिक यथार्थ है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५१)
  • जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है और ईश्वर की सत्ता में आस्था रखता है वह कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १६)
  • समुद्र जलराशियों का समूह है। प्रत्येक बूंद का अपना अस्तित्व है तथापि वे अनेकता में एकता के द्योतक हैं। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ १४७)
  • पीडा द्वारा तर्क मजबूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंतर्दृष्टि खोल देती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२)
  • किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के खजाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है। -- (महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ १६५)
  • विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नींव ठोस हो। -- (एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ पृष्ठ २७)
  • मेरे विचारानुसार मैं निरंतर विकास कर रहा हूं। मुझे बदलती परिस्थितियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना आ गया है तथापि मैं भीतर से अपरिवर्तित ही हूं। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४)
  • ब्रह्मचर्य क्या है ? यह जीवन का एक ऐसा मार्ग है जो हमें परमेश्वर की ओर अग्रसर करता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४)
  • प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४)
  • सत्याग्रह और चरखे का घनिष्ठ संबंध है तथा इस अवधारणा को जितनी अधिक चुनौतियां दी जा रही हैं इससे मेरा विश्वास और अधिक दृढ होता जा रहा है। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २६४)
  • हमें बच्चों को ऐसी शिक्षा नहीं देनी चाहिए जिससे वे श्रम का तिरस्कार करें। -- (एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ २०)
  • सभ्यता का सच्चा अर्थ अपनी इच्छाओं की अभिवृद्धि न कर उनका स्वेच्छा से परित्याग करना है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १८९)
  • अंतत : अत्याचार का परिणाम और कुछ नहीं केवल अव्यवस्था ही होती है। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ १०२)
  • हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जिसमें मालिक मजदूर एवं जमींदार किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २५५)
  • किसी भी समझौते की अनिवार्य शर्त यही है कि वह अपमानजनक तथा कष्टप्रद न हो। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ६७)
  • यदि शक्ति का तात्पर्य नैतिक दृढता से है तो स्त्री पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३)
  • स्त्री पुरुष की सहचारिणी है जिसे समान मानसिक सामथ्र्य प्राप्त है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२)
  • जब कोई युवक विवाह के लिए दहेज की शर्त रखता है तब वह न केवल अपनी शिक्षा और अपने देश को बदनाम करता है बल्कि स्त्री जाति का भी अपमान करता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९८)
  • धर्म के नाम पर हम उन तीन लाख बाल-विधवाओं पर वैधव्य थोप रहे हैं जिन्हें विवाह का अर्थ भी ज्ञात नहीं है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७)
  • स्त्री जीवन के समस्त पवित्र एवं धार्मिक धरोहर की मुख्य संरक्षिका है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९३)
  • महाभारत के रचयिता ने भौतिक युद्ध की अनिवार्यता का नहीं वरन् उसकी निरर्थकता का प्रतिपादन किया है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ९७)
  • स्वामी की आज्ञा का अनिवार्य रूप से पालन करना परतंत्रता है परंतु पिता की आज्ञा का स्वेच्छा से पालन करना पुत्रत्व का गौरव प्रदान करती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७)
  • भारतीयों के एक वर्ग को दूसरेे के प्रति शत्रुता की भावना से देखने के लिए प्रेरित करने वाली मनोवृत्ति आत्मघाती है। यह मनोवृत्ति परतंत्रता को चिरस्थायी बनानेे में ही उपयुक्त होगी। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३५२)
  • स्वतंत्रता एक जन्म की भांति है। जब तक हम पूर्णत : स्वतंत्र नहीं हो जाते तब तक हम परतंत्र ही रहेंगे। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३११)
  • आधुनिक सभ्यता ने हमें रात को दिन में और सुनहरी खामोशी को पीतल के कोलाहल और शोरगुल में परिवर्तित करना सिखाया है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६०)
  • मनुष्य तभी विजयी होगा जब वह जीवन-संघर्ष के बजाय परस्पर-सेवा हेतु संघर्ष करेगा। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ३६)
  • अयोग्य व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी दूसरे अयोग्य व्यक्ति के विषय में निर्णय दे। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३)
  • धर्म के बिना व्यक्ति पतवार बिना नाव के समान है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३)
  • सादगी ही सार्वभौमिकता का सार है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ८२)
  • अहिंसा पर आधारित स्वराज्य में, व्यक्ति को अपने अधिकारों को जानना उतना आवश्यक नहीं है जितना कि अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२)
  • मजदूर के दो हाथ जो अर्जित कर सकते हैं वह मालिक अपनी पूरी संपत्ति द्वारा भी प्राप्त नहीं कर सकता। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३३)
  • अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४)
  • पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंत : सफलता का सही अर्थ महान असफलताओं की श्रृंखला है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४)
  • थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है।
  • पूर्ण धारणा के साथ बोला गया "नहीं" सिर्फ दूसरों को खुश करने या समस्या से छुटकारा पाने के लिए बोले गए “हाँ” से बेहतर है।
  • पूंजी अपने-आप में बुरी नहीं है, उसके गलत उपयोग में ही बुराई है। किसी ना किसी रूप में पूंजी की आवश्यकता हमेशा रहेगी।
  • मैं मरने के लिए तैयार हूँ, पर ऐसी कोई वज़ह नहीं है जिसके लिए मैं मारने को तैयार हूँ।
  • जब मैं निराश होता हूँ, मैं याद कर लेता हूँ कि समस्त इतिहास के दौरान सत्य और प्रेम के मार्ग की ही हमेशा विजय होती है। कितने ही तानाशाह और हत्यारे हुए हैं, और कुछ समय के लिए वो अजेय लग सकते हैं, लेकिन अंत में उनका पतन होता है। इसके बारे में सोचो- हमेशा।
  • उपदेश करने से पहले खुद के गुण देखने चाहिए।
  • सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है।
  • जब तक गलती करने की स्वतंत्रता ना हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]

बाह्य सूत्र[सम्पादन]

सन्दर्भ[सम्पादन]